और फिर यह, “मैं उस पर भरोसा रखूँगा।” -इब्रानियों 2:13
नीतिवचन 17:1 कहता है कि एक घर जिसने मेलबलि पशु भरे हुए हों परन्तु उसमें झगड़े रगड़े हों प्रभु को प्रसन्न नहीं करते। दूसरे शब्दों में हम समय, और प्रयास का सभी प्रकार का बलिदान लोगों की सहायता करने के लिए करें। फिर भी परमेश्वर हम से तब तक प्रसन्न नहीं होता है जब तक हम शांति में नहीं रहते हैं। शांति का पीछा करने का अर्थ एक प्रयास करना है, परन्तु हम अपने दैनिक प्रयासों के द्वारा शांति नहीं बना सकते हैं हमें परमेश्वर की सहायता की ज़रूरत है और हमें अनुग्रह की ज़रूरत है। जो उसकी सामथ्र्य है जो हमारी सहायता करता और हमें वह करने के लिए योग्य बनाता है जो हमें करने की ज़रूरत है।
जो प्रयास हम करते हैं वह अवश्य ही मसीह में होना चाहिए। इसीलिए अक्सर हम परमेश्वर की बिना सहायता माँगे वह करने का प्रयास करते हैं जो सही है। और इस प्रकार दैहिक प्रयास कभी भी अच्छे फल उत्पन्न नहीं करते। बाइबल इसे “देह का कार्य कहती है” यह परमेश्वर के कार्य करने का मनुष्य का प्रयास है। मैं जो कह रही हूँ वह है कि आप इस बात को सुनिश्चित करें कि आप परमेश्वर पर आश्रित हों और उसकी सहायता माँगते हों। जब आप आगे बढ़ते हैं उसे श्रेय दें, और आदर दें, और महिमा दें क्योंकि उसके बिना सफलता असंभव है। यीशु ने कहा, “मुझ से अलग होकर तुम कुछ भी नहीं कर सकते।” (यूहन्ना 15:5)
इस वचन पर विश्वास करने में हम में से अधिकांश लोगों के लिए बहुत समय लगता है कि हम परमेश्वर पर आश्रित हुए बिना चीजों को करने का प्रयास करना रोक दें। हम प्रयास करते और पराजित होते हैं, प्रयास करते और पराजित होते हैं। यह बार बार होता है जब तक हम अन्ततः स्वयं नहीं थक जाते और यह समझ नहीं जाते कि परमेश्वर स्वयं हमारी सामथ्र्य, हमारी सफलता, और हमारा विजय है। वह न केवल हमें सामथ्र्य देता है – वह हमारी सामथ्र्य है। वह न केवल हमें विजय देता है – वह हमारा विजय है। हाँ, हम शांति बनाए रखने का प्रयास करते हैं, परन्तु हमें परमेश्वर के उस सामथ्र्य पर निर्भर हुए बिना यह करने का साहस नहीं करना चाहिए जो हममें से बहता है-यदि हम ऐसा करते हैं तो पराजय निश्चित है।