
इसलिए सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो जो (हृदय में) बोया गया और
जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। -याकूब 1:21
कभी कभी परमेश्वर प्रकृति के नियमों से आगे बढ़ता है और हमसे अलौकिक प्रकाशनों द्वारा बात करता है। परमेश्वर के वचन से बढ़कर अधिक कुछ भी अलौकिक नहीं है जो हमें पवित्रा आत्मा के ईश्वरीय प्रेरणा के द्वारा अपने भविष्यद्वक्ताओं और शिष्यों से बात करने के द्वारा दिया गया है। हमारे प्रत्येक सवाल का बाइबल में एक उत्तर पाया जाता है। हर एक जो परमेश्वर के वचन को सुनना चाहता है उसे अवश्य ही परमेश्वर के वचन का एक छात्र होना चाहिए। अन्य सभी रास्तों में जिससे परमेश्वर हमसे बात कर सकता है यह कभी भी वचन के साथ टकराव पैदा नहीं करेगा।
यदि हम सोचते है कि परमेश्वर की आवाज़ को उसके वचन को पढ़े बिना हम सुन सकते है तो हम गलती कर रहे हैं परमेश्वर की आवाज़ सुनने के लिए यदि हम परमेश्वर के वचन को न पढ़े तो वह एक ऐसा रास्ता खोलता है जहाँ पर हमें ऐसी आवाज़ें सुनाई देती है जो परमेश्वर की तरफ़ से नहीं होती है। लीखित वचन को जानना हमें धोखे से बचाता है। कुछ लोग परमेश्वर के पास तभी आते हैं जब वे कष्ट में होते हैं और सहायता की ज़रूरत होती है। परन्तु यदि वे परमेश्वर से सुनने के आदि नहीं हैं तो उन्हें उसकी आवाज़ को पहचानना मुश्किल होगा जब उन्हें वास्तव में उसकी ज़रूरत होगी।
यहाँ तक कि यीशु ने भी यह कहते हुए शैतान का प्रतिरोध किया, “ऐसा लिखा है।” (लूका 4 देखिए) एक विचार, एक बाध्यता, और एक सलाह जो हमारे पास आती है उसे परमेश्वर के वचन के साथ तुलना किए जाने की ज़रूरत है। सभी व्यस्त कल्पनाएँ निकाल देना और अनदेखा किया जाना है। (2 कुरिन्थियों 10:5 देखिए) परन्तु वचन का ज्ञान परमेश्वर की आवाज़ की परख करने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।