शकों पर शक करना

शकों पर शक करना

प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु हैः प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झूँझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। कुकर्म से आनन्दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्दित होता है। वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियाँ हों, तो समाप्त हो जाएँगी; भाषाएँ हों, तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा।- 1 कुरिन्थियों 13:4-8

प्रेम के विषय में यह शब्द हम में से अधिकांश सुपरिचित हैं। परन्तु मैं इमानदारी पूर्वक कह सकती हूँ कि इन्हें जीना मेरे लिये हमेशा आसान नहीं रहा है। एक बच्चे के रूप में मैं इस प्रकार के प्रेम के प्रति जागरूक नहीं थी – वास्तव में मुझे प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सन्देही होना सिखाया गया था। मुझे कहा गया था, कि अन्य लोगों के लक्ष्य भरोसे के लायक नहीं होता है।

जब मैं बड़ी हुई तब मेरा सामना ऐसे लोगों से हुआ जिनके कार्यों ने मेरे मन को सुनिश्चित किया कि मेरा सन्देह सही था। एक जवान मसीही के रूप में भी कलीसिया में कुछ लोगों के स्पष्ट लक्ष्यों के कारण मैंने निराशा का अनुभव किया। जब कि लोगों के लक्ष्य के प्रति जागरूक होना बुद्धिमानी है, तब भी हमें सतर्क होना चाहिये कि हम अपने सन्देही स्वभाव को अन्य लोगों के प्रति हमारे नकारात्मक भावनाओं पर प्रभाव न डालने पाए।

बहुत अधिक सन्देही स्वभाव आपके मन को जहरिला बना सकता है और प्रेम करने और दूसरों को स्वीकार करने की आपकी योग्यता को प्रभावित कर सकता है। इस उदाहरण पर विचार करें –

मान लीजिये आराधना सभा के पश्चात एक मित्र आपके पास आती है और आपसे कहती है, ‘‘क्या आप जानती हैं, कि डौरिस आपके बारे में क्या सोचती है?’’ तब यह मित्र आपको हर बात बताती है जो डौरिस ने उनसे कही। पहली समस्या यह है, कि एक सच्चा मित्र कभी भी ऐसी सूचना आप तक नहीं पहुँचाएगा। और दूसरी समस्या यह है कि पहले से ही सन्देही मन के साथ अब आप दूसरे व्यक्ति के दिए गए सूचना पर विश्वास करते हैं।

एक बार जब आपका मन किसी के प्रति कड़वा हो जाता है, तब सन्देह बढ़ता है। तभी शैतान आपके मन में एक दृढ़ गढ़ प्राप्त करता है। प्रत्येक बार जब डौरिस आपसे कुछ कहती है आप स्वतः ही सन्देही हो जाते हैं और सोचने लगते हैं। वास्तव में उसका अर्थ क्या था? या यदि वह आपके साथ भला व्यवहार करती है, तो आप सोचते हैं वह मुझसे क्या चाहती होगी?

इसी प्रकार शैतान काम करता है। यदि वह आपको दूसरे के प्रति सन्देही बना सकता है, तो वह दिन दूर नहीं जब आप उनकी किसी भी शकों पर शक करना बात पर भरोसा नहीं करेंगी। और यदि इस प्रकार आप कई बार चोट खाएँगे तो शैतान आपके विचार को इतना जहरिला बना सकता है कि आप यह सोचने लग जाएँगे कि आपके पीठ पीछे कौन बात कर रहा है?

आइये इस उदाहरण को जारी रखें। मान लीजिए एक रविवार को कलीसिया में डौरिस आपसे एक पंक्ति आगे बैठी है, और परमेश्वर की स्तुति कर रही है और ताली बजा रही है। तुरन्त आप सोचते हैं वह कैसी पाखण्डी है?

तब पवित्र आत्मा आपकी विचारों को आपकी स्थिति की ओर ले जाता है और यह सच्चाई बताता है कि ताली बजाते हुए और प्रभु की स्तुति करते हुए आप डौरिस के विषय में गलत भावना रख रही थी। क्या यीशु ने बलिदान चढ़ाने से पहिले हमें दूसरों के साथ मेलमिलाप करने के लिये नहीं कहा? (मत्ती 5:24 देखें)।

यीशु के इन वचनों के द्वारा कायल किये जाकर आप आगे बढ़कर डौरिस से उसके प्रति आपके बुरी भावनाओं के लिये क्षमा मांगते हैं………और उसे एक झटका सा लगता है और वह आपकी तरफ घूरती है। तब आप अपनी गलती को समझ जाते हैं। आप के मित्र ने आपके साथ डौरिस के विषय में जो कुछ सूचना दी थी उसकी आपने गलत व्याख्या की थी, और आपने एक ऐसे ईश्वरीय महिला के विरूद्ध होने के लिये शैतान को काम करने दिया था।

यह इस बात के लिये एक अच्छा उदाहरण है, कि सन्देह किस प्रकार से संबन्धों में विकलांगता ला सकती है और हमारी शान्ति को कैसे वह नाश कर सकती है जब कि वह हमें दूर कर देती है। इसलिये 1 कुरिन्थियों 13 के समान प्रेम का विकसित करना सीखना बहुत महत्वपूर्ण है।

परन्तु अन्ततः मैंने सिखा कि जब हम परमेश्वर के मार्ग से प्रेम करने लगते हैं तब हमारे पास दूसरों पर सन्देह करने का कोई स्थान नहीं रह जाता है।

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परमेश्वर यह दिखाने के लिये कि मैं किस प्रकार अपने सन्देही स्वभाव पर विजय पा सकती हूँ, और मुझे यह सिखाने के लिये कि दूसरों से आपके समान मैं कैसे प्रेम कर सकती हूँ। मैं धन्यवाद करती हूँ। यीशु आपका धन्यवाद कि आप मेरे साथ धीरजवन्त बने रहे और मेरा अच्छा उदाहरण बनने के लिये धन्यवाद। आमीन।।

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