मैं तुम्हें (स्वयं की) शांति दिए जाता हूँ, अपनी शांति तुम्हें देता हूँ; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देताः तुम्हारा मन व्याकुल न हो और न डरे। -यूहन्ना 14:27
बहुत से लोग परमेश्वर से नहीं सुन सकते क्योंकि उनके जीवन में बहुत सारी परेशानियाँ है। उनका भीतरी भाग यातायत के भीड़ भरे समय के समान भीड़ भरा होता है। वे सचमुच में नहीं जानते हैं कि कैसे शांति से भरे हो सकते हैं। यह ऐसा है मानो वे विपत्ति के आदि हों। वे बातों को आंदोलित और झकझोरा हुआ रखते हैं और ऐसा लक्ष्यपूर्वक करते हैं। सच में वे विपत्ति की दशा में सुविधाजनक जीवन जीते हैं। यह उनकी सामान्य स्थिति बन गई है यद्यपि यह परमेश्वर के पवित्र शास्त्र में कभी भी सामान्य नहीं है।
यह अजीब सा लगता है परन्तु जब मैंने शांत होना सीखना प्रारंभ किया पहले पहले मुझे यह उबाऊ लगा। अपने जीवन में बड़ी घटनाओं के होते रहने की मैं इतनी अधिक आदि हो गई थी कि मैं चकित हुई, मुझे अपने साथ क्या करना चाहिए? रोमियों 3:17 कहता है, “उन्होंने शांति का मार्ग नहीं जाना (उन्हें शांति के विषय में कुछ भी नहीं मालूम था यहाँ तक कि शांति के मार्ग को वे पहचानते भी नहीं थे)।”
यह वर्णन करता है कि मेरा जीवन किस प्रकार का था। शांतिपूर्ण जीवन जीने का मेरा कोई अनुभव नहीं था। मुझे यह भी नहीं मालूम था कि यह कैसे प्रारंभ करना है। मैं एक तनाव के माहौल में पली बढ़ी थी और मैं केवल यही जानती थी। मुझे जीवन के एक समूचे नए मार्ग को सीखना था।
परन्तु अब मैं शांति की आदि हो गई हूँ। जैसे ही मेरी शांति अदृश्य हो जाती है तो मैं स्वयं से पूछती हूँ, कि यह किस प्रकार हुआ और उसे वापस पाने के मार्ग ढूँढ़ने लगती हूँ। मैं विश्वास करती हूँ कि जब आप इसे पढ़ते हैं तो आप परमेश्वर के साथ शांति, स्वयं के साथ शांति, दूसरों के साथ शांति के बहुत अधिक भूखे हो जाएँगे कि आप इस बात के इच्छुक हो जाएँगे कि इसे पाने के लिए आपको चाहे जो भी करना पड़े आप करेंगे। मैं यह भी विश्वास करती हूँ कि आप हर समय शांति का अनुकरण करना प्रारंभ करेंगे क्योंकि शांति आपको परमेश्वर के सिद्ध इच्छा तक ले जाएगी।
यीशु ने कहा कि यदि हम उसका अनुकरण करते हैं तो वह हमें अपनी शांति (मुफ़्त में) देगा। वास्तव में उसने कहा कि वह अपनी स्वयं की शांति हमें देगा। (यूहन्ना 14:27 देखिए)