शांति पाना

शांति पाना

अतः हे भाइयों, आनंदित रहो (प्रसन्न रहो); सिद्ध बनते जाओ; ढाढ़स रखो;  एक ही मन (सहमत) रखो; मेल से रहो। और (तब) प्रेम और शांति का  दाता परमेश्वर (जो मनुष्य के प्रति स्नेह, सदभाव, प्रेम, और  परोपकार का श्रोत है) तुम्हारे साथ होगा। -2 कुरिन्थियों 13:11

हम अपने समाज में प्रतिदिन तनाव का जो कारण पाते हैं वह शोर है। हम एक शोरग्रस्त समाज में रहते हैं। एक शांत वातावरण का आनंद उठाने के लिए हमें ऐसे समाज का निर्माण करना चाहिए। एक ऐसा स्थान पाएँ जो शांत हो। एक ऐसा स्थान जहाँ पर आपको बाधा न पहुँचाई जाए और कुछ समय शांत रहने का आनंद उठाना सीखने दें। मेरे विश्राम कक्ष में एक कुर्सी हैं जिसमें मैं बैठकर अपने आपको भला चंगा कर लेती हूँ। वह एक आराम कुर्सी है जो आंगन की तरफ़ खुलनेवाली खिड़की ओर रखी हुई है जहाँ पेड़ पौधे भरे हुए हैं।

कभी कभी मैं वहाँ घंटो बैठती हूँ। स्थिर बैठने से हम पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। शांति और शांति पैदा करती है। यदि हम शांत स्थान पाते हैं और उसमें कुछ क्षण ठहरते हैं तो हम अपनी आत्मा में शांति व्याप्त होते हुए महसूस करते हैं। हम लगातार शोरगुल वाले समाज में रहना और शांति महसूस करने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं।

यीशु ने सुनिश्चित किया कि उसे शांत रहने का अवसर मिले और अकेले समय व्यतीत करें। वह लोगों की सेवा करता था परन्तु वह निरन्तर भीड़ से दूर अकेले जाता और प्रार्थना करता था। “परन्तु उसकी चर्चा और भी फैलती गई, और भीड़ की भीड़ उसकी सुनने के लिए और अपनी बीमारियों से चंगा होने के लिए इकट्ठी हुई। परन्तु वह जंगलों में अलग जाकर प्रार्थना किया करता था।” (लूका 5:15-16)

निश्चित ही यदि यीशु को इस प्रकार के जीवनचर्या की ज़रूरत थी तो हमें भी है। परमेश्वर के साथ ठहरे रहना हमारी देह, मन और भावनाओं को किसी और चीज़ से अधिक पुनरूत्थान करता है। हमें इसे निरन्तर करने की ज़रूरत है। इसे करने में पहल करें और किसी को हममें से इसे छीनने न दें। अपने दिनचर्या को परमेश्वर के आस पास बनाएँ। अपनी दिनचर्या में परमेश्वर को दबाव पूर्वक न रखें।

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