
केवल यही नहीं, (आओ अब हम आनंद से भर जाएँ) वरन् हम क्लेशों में भी घमण्ड करें, यह जानकर कि क्लेश से धीरज, और धीरज से खरा निकलना, और खरे निकलने से आशा उत्पन्न होती है; और आशा से लज्जा नहीं होती, क्योंकि पवित्र आत्मा जो हमें दिया गया है उसके द्वारा परमेश्वर का प्रेम हमारे मन में डाला गया है। -रोमियों 5:3-4
यह कहना आसान है कि “चिंता न करो”। परन्तु वास्तव में यह करना परमेश्वर के साथ अनुभव की आवश्यकता है। मैं नहीं सोचती कि कोई ऐसा रास्ता भी है जहाँ एक व्यक्ति पूरी रीति से चिंता, व्याकुलता और भय पर विजय पा सकता है और शांति, विश्राम, और आशा की आदत् को बिना अनुभव के विकसित कर सकता है। इसीलिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम हमारे विश्वास और परमेश्वर पर भरोसे को बनाए रखें जब मुसीबतों का सामना करते हैं। परीक्षा का विरोध करना और हार मानने या छोड़ देने से अलग होना जब परिस्थितियाँ बुरी तरह से गुज़र रही हों और लगातार एक लम्बे समय तक खराब समय चल रहा हो। यह उन कठिन और प्रयासरत समयों में है जब प्रभु हममें स्वयं, सहनशीलता और चरित्र का निर्माण कर रहा है जो अन्ततः में आनंद और भरोसेमन्द की आशा उत्पन्न करेगा।