सकारात्मक विश्वास

सकारात्मक विश्वास

उसने निराशा में भी आशा रखकर विश्वास किया, इसलिए कि उस वचन के अनुसार कि ‘‘तेरा वंश ऐसा होगा,’’ वह बहुत सी जातियों का पिता हो। वह जो एक सौ वर्ष का था, अपने मरे हुए से शरीर और सारा के गर्भ की मरी हुई दशा जानकर भी विश्वास में निर्बल न हुआ, और न अविश्वासी होकर परमेश्वर की प्रतिज्ञा पर संदेह किया पर विश्वास में दृढ़ होकर परमेश्वर की महिमा की और निश्चय जाना कि जिस बात की उसने प्रतिज्ञा की है वह उसे पूरा करने में भी समर्थ है।

– रोमियों 4:18-21

चाहे मैं कितनी भी बार पढूँ, परन्तु मुझे इब्राहिम की कहानी आश्चर्यचकित करती है। यह केवल पुत्र के उत्पन्न होने का वर्णन ही नहीं है जब वह 100 साल का हो गया। यह एक आश्चर्यकर्म है। परन्तु यह सूचना और भी आश्चर्यजनक है कि पूरे 25 वर्षों तक प्रतिज्ञा के पूरे होने का इन्तज़ार किया। वह 75 वर्ष का था जब परमेश्वर एक पुत्र होने की प्रतिज्ञा दी थी। मुझे नहीं मालुम कि हम में से कितने लोग परमेश्वर पर इस प्रकार करेंगे और 25 वर्षों तक उम्मीद में जीयेंगे। हम में से अधिकतर कहे होते, शायद मैंने परमेश्वर से सुना नहीं। शायद परमेश्वर का यह मतलब नहीं था। या मुझे और स्पष्ट सन्देश के लिये और कहीं जाने की आवश्यकता है।

सारा और अब्राहम के साथ भी इस प्रतिज्ञा में बने रहने की समस्या थी। जो उन्हें चाहिए उसे पाने के लिये सारा की दासी हाजिरा थी, जिसने पुत्र को उत्पन्न किया। परन्तु परमेश्वर ने उसे कहा कि उसकी प्रतिज्ञा इस प्रकार पूर्ण नहीं होगी। मैं विश्वास करती हूँ कि परमेश्वर के प्रतिज्ञा को पूरा होने में उसके कार्य के कारण डेरी हुई।

हमारे अधैर्य के कारण हम कई बार चीज़ों को स्वयं सम्भालने लगते हैं। मैं कहती हूँ हमें अच्छे योजनायें मिलती हैं जो हम स्वयं के लिये सोचते हैं, और हम सोचते हैं कि परमेश्वर उन पर आशीष देगा। और जिसके कारण परमेश्वर की आश्चर्यकर्म में डेरी होती है।

जब मूसा दस आज्ञाओं को पाने के बाद सिनै पर्वत से नीचे आया, तो उसने इस्राएलियों के दुष्टता को देखा जो इन्तज़ार करते करते धैर्य खो दिये थे। क्रोध के कारण उसने उन पटियाओं को तोड़ दिया जिस पर परमेश्वर ने आज्ञाओं को लिखा था। यद्यपि हम मूसा की क्रोध को समझते हैं, परन्तु हमें समझना है कि यह परमेश्वर की ओर से नहीं था। इसलिए मूसा को पुनः सिनै पर्वत पर जाना पड़ा और दस आज्ञायें के प्रक्रिया से होकर गुज़रना पड़ा। मूसा कुछ समय तक भावनात्मक रूप से मुक्त हो गया, परन्तु उसे बहुत अधिक कार्य करना पड़ा। यह हम सब के लिये अच्छा सबक है। पहले हमें प्रार्थना करना चाहिए और परमेश्वर की योजना से सहमत होना चाहिए, न कि पहले योजना बनाए और प्रार्थना करें कि हमारी योजना काम करे।

यह बहुत मुश्किल होता है परमेश्वर पर भरोसा करना और वर्षो तक इन्तज़ार करना।

कभी-कभी मेरे सभा के पश्चात लोग मेरे पास आते हैं और मुझ से बहुत दु:खों का वर्णन करते हैं। मैं उन्हें उत्साहित करती हूँ, ताकि वे सकारात्मक बनें। कुछ लोग मेरे कहे प्रत्येक शब्दों को ध्यान से सुनेंगे, सिर हिलायेंगे, सम्भवतः मुस्कुराएँगे भी। और वे तब सब से अधिक नकारात्मक बात भी कहेंगे, ‘‘परन्तु ……….।’’ उस एक शब्द के द्वारा मेरे कहे हर एक बात को वे नकार देते हैं। यह अब्राहम की आत्मा नहीं है।

बाइबल हमें प्रतिज्ञाएँ, आशा और प्रोत्साहन देती है। हम में से जो उसकी सेवा करते हैं, उस से परमेश्वर भलाई की प्रतिज्ञा करता है। हमारी परिस्थिति के विपरित-और कुछ लोगों की परिस्थिति तो बहुत ही भयानक होती है-परमेश्वर आपसे भलाई की प्रतिज्ञा करता है। भलाई का हमारा नजरिया सम्भवतः परमेश्वर के समान न हो। हमें जो चाहिये उसे तुरन्त प्राप्त करना शायद हमारे लिये उत्तम न हो। कभी कभी इन्तज़ार करना हमारे लिये सब से उत्तम हो सकता है। क्योंकि यह हमारे भीतर परमेश्वर के स्वभाव को एकत्रित करता है।

परमेश्वर हमारे लिये भला करने का चुनाव करता है और हमें प्रसन्न करना चुनता है। शैतान हमारा बुरा करना और हमें दुर्दशा में डालना चाहता है। हम धीरजवन्त रह सकते हैं और परमेश्वर के प्रतिज्ञाओं पर विश्वास रख सकते हैं या हम शैतान की फुसफुसाहट से अपने कानों को भर सकते हैं और स्वयं को प्रतिज्ञाओं से दूर कर सकते हैं।

हम में से बहुतों ने इस सच्चाई को अनदेखा कर दिया है कि परमेश्वर आश्चर्यकर्मों का उत्पन्न करनेवाला है। असम्भव कामों को करने में वह विशेषज्ञ हैं। उसने बाँझ सारा को एक पुत्र दिया। उसने लाल सागर को इस्राएलियों के लिये खोल दिया ताकि वे सुखी भूमि में से पार चले जाएँ। एक पत्थर के हथेले बार से उसने गोलियत को मार गिराया, वे आश्चर्यकर्म हैं। यह पवित्र आत्मा का कार्य है, जो प्रकृति के नियमों को तोड़ता है। (उसने नियमों को बनाया इसलिये वह नियमों को तोड़ सकता है)।

इब्रानियों 11 अध्याय विश्वास के विषय में है, और परमेश्वर के लोगों के विषय में है, जिन्होंने प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करने का साहस किया। (‘‘पद 6 को लिखें।’’)

जब मैं इस पद पर विचार करती हूँ, तब मैं देखती हूँ कि किस प्रकार से शैतान भीतर आता है। वह हम से कहता है, ‘‘हाँ, यह सच्च है।’’ वे विशेष लोग थे, तुम कुछ नहीं हो। परमेश्वर तुम्हारे लिये कुछ भी विशेष नहीं करेगा। वह ऐसा क्यों करेगा?

यह शैतान का झुठ है। ऐसा झुठ जो आसानी से विश्वास किया जा सकता है। परमेश्वर हर एक से प्रेम करता है और बाइबल कहती है कि वह हमारा पिता है। कोई भी भला पिता अपने बच्चों के लिये भला काम करना पसन्द करता है। परमेश्वर मेरे और आप के लिये भलाई करना पसन्द करता है।

अपने जीवन में एक आश्चर्यकर्म की कामना करें। अपने जीवन में बहुत से आश्चर्यकर्मों की अपेक्षा करें। परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं पर सकारात्मक विश्वास अच्छा परिणाम लाता है, क्योंकि वह भला परमेश्वर उन्हें हमारे लिये भेजता है। हार मानने से इनकार करें और आप अपने सकारात्मक विश्वास का परिणाम देखेंगे।

प्रार्थना, ‘‘प्रिय स्वर्गीय पिता, मेरे अविश्वास को क्षमा करें। शैतान को धोका देने की अनुमति देने के लिये मुझे क्षमा करें। या मुझे ऐसा सोचने देने के लिये कि मैं अयोग्य और कमतर हूँ, कि तू मेरे लिये आश्चर्यकर्म न कर सकें। मैं योग्य हूँ, क्योंकि तुने मुझे योग्य बनाया है। तू असम्भव का परमेश्वर है। मैं प्रार्थना करता हूँ, कि आप मेरी सहायता करें कि मैं आप के लिए बाट जोहूं और कभी भी हार न माँनू। यीशु मसीह मेरे प्रभु के नाम से। आमीन।।’’

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