
प्रार्थना करते समय अन्यजातियों के समान बक-बक न करो, (शब्दों को बढ़ाना, एक ही शब्द को कई बार दुहराना) क्योंकि वे समझते हैं कि उनके बहुत बोलने से उनकी सुनी जाएगी। -मत्ती 6:7
हमें अवश्य ही साधारण विश्वास करनेवाली प्रार्थना में भरोसा विकसित करना चाहिए। हमें यह भरोसा होना चाहिए कि यदि हम सामान्य रूप से कहें, “परमेश्वर मेरी सहायता कर।” वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है और उत्तर देगा। हम विश्वासयोग्य होने के लिए परमेश्वर पर भरोसा रख सकते हैं। वह करने के लिए जो हमने उससे करने के लिए प्रार्थना की है। जब तक हमारी विनती उसकी इच्छा के अनुरूप है। बहुत बार हम प्रार्थना के विषय में अपने ही कार्यों में फँस जाते हैं।
कभी कभी हम इस तथ्य को नहीं देख पाते हैं कि प्रार्थना करना उसके साथ बातचीत करना है। हमारी प्रार्थना की लम्बाई, आवाज़ या वाक-पटुता मुद्दा नहीं है। वह हमारे हृदय की गंभीरता और भरोसा है कि परमेश्वर सुनता है और हमें उत्तर देगा जो महत्वपूर्ण है। कभी कभी हम बहुत ही समर्पित और सुरुचिपूर्ण दिखने का प्रयास करते हैं कि हम खो जाते हैं। यदि हम कभी परमेश्वर को प्रभावित करने के प्रयास से मुक्त हो जाते हैं तो यह हमारे लिए बहुत ही अच्छा होता।
1 थिस्सलुनिकियों 5:17 कहता है, “निरन्तर प्रार्थना में लगे रहो (दृढ़ता के साथ प्रार्थना करना)।” यदि हम सामान्य विश्वासी प्रार्थना नहीं समझते हैं तो निर्देश हम पर एक भारी बोझ के रूप में आ सकता है। हम महसूस कर सकते हैं कि दिन में तीस मिनट प्रार्थना करने के द्वारा मैं अच्छा कर रहा हूँ। इसलिए हम बिना रूके कभी कैसे प्रार्थना कर सकते हैं। हमें अपनी प्रार्थना जीवन के विषय में ऐसा भरोसा रखने की ज़रूरत है कि प्रार्थना साँस लेने के समान बन जाती है। एक प्रयास रहित कार्य जो हम प्रत्येक क्षण करते हैं जब तक हम जीवित हैं।
साँस लेने के लिए हम तब तक कोई संघर्ष या कार्य नहीं करते हैं जब तक हमारे कोई सग्गे संबंधी बीमार नहीं हो और न ही हमें प्रार्थना में कायल करना या संघर्ष करना चाहिए। मैं विश्वास नहीं करती कि उस क्षेत्र में हम संघर्ष करेंगे यदि हम सरल विश्वासी प्रार्थना की सामर्थ्य को समझते हैं। हम स्मरण करेंगे कि प्रार्थना को गंभीर उसके पीछे के विश्वास के द्वारा सामर्थी बनाया जाता है।