पर वे उसको जो जीवतों ओर मरे हुओं का न्याय करने को तैयार है, लेखा देंगे। -1 पतरस 4:5
मेरा एक कर्मचारी था जिन्होंने मेरा फ़ायदा उठाया था। वे अपेक्षा करते थे कि मैं अधिक घण्टों तक कार्य करूँ जिससे मैं अपने परिवार के साथ उचित समय व्यतीत न कर सकी। मैं थक जाती थी और स्वयं के लिए भी समय नहीं निकाल पाती थी। उसने कभी भी मेरी प्रशंसा नहीं दिखाई और हमेशा अधिक चाहते थे। यदि मैं नम्रता पूर्वक यह सूचित भी करती कि शायद मैं उनके निवेदनों में से एक को नहीं कर पाऊँगी, तो उनका क्रोध उभरने लगता था और मैं अपनी गुफ़ा में छिप जाती और जो कुछ वो मुझ से करने के लिए कहते थे उससे सहमत हो जाती थी।
जब मैं परिस्थिती के विषय में एक दिन प्रार्थना कर रही थी और परमेश्वर के सामने सिसक रही थी कि यह कितना अन्याय है। उसने कहा, “तुम्हारा बॉस जो कर रहा है वह गलत है। परन्तु उनके प्रति तुम्हारा व्यवहार भी गलत है।” मेरे लिए यह सुनना कठिन था। अधिकांश लोगों के समान मैं भी अपने साहस कमी के लिए किसी और को दोष देना चाहती थी। क्या मैं लोगों को प्रसन्न करनेवाली नहीं थी? और क्या मैं भयभीत नहीं थी? मैं अपने पाँच सालों को बचा सकती थी जिसे मैंने इतने तनाव में गुज़ारे कि इस बात में मुझे क्रमशः बीमार कर दिया। मेरा बॉस मेरी समस्या नहीं थे मैं अपनी समस्या थी।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि परमेश्वर ने सब से पहले आपको अपने जीवन पर अधिकार दिया है। यदि आप उस अधिकार को स्वीकार नहीं करते और उसका अभ्यास नहीं करते आप शायद अपने जीवन पर दूसरों को दोष लगाते है उन बातों के लिए जिन्हें आपको करने की आवश्यकता है। उन बातों के अनुसार जिनके विषय में आप विश्वास करते हैं कि आपके लिए परमेश्वर की इच्छा है।
न्याय के दिन परमेश्वर किसी और से आपके जीवन का हिसाब नहीं माँगेगा, वह केवल आपसे माँगेगा। वह केवल आपसे पूछेगा (मत्ती 12:36; और 1 पतरस 4:5 देखिए)। क्या होता यदि यीशु न्याय के दिन आप से पूछता, आपने क्यों उसकी बुलाहट को पूरा करने के लिए अपने जीवन में ध्यान नहीं दिया? क्या आप उससे यह कहने जा रहे हैं कि लोगों ने आपका लाभ उठाया और आप इसके विषय में कुछ नहीं कर सके? क्या आप उनसे यह कहने जा रहे हैं कि लोगों को प्रसन्न करने में आप व्यस्त रहे और आप कभी भी उसे प्रसन्न नहीं कर सके? यदि आप ऐसे बहाने बनाते हैं तो क्या आप सचमुच में सोचते हैं कि वे स्वीकारयोग्य होंगे?