इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर विनती करता हूं, कि अपने शरीरों को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओः यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। – रोमियों 12:1
2 कुरिन्थियों 8 में जब पौलुस कुरिन्थियों के विश्वासियों के साथ उनके देने के बारे में बात कर रहा था, उसने उन्हें मकिदुनिया में की कलीसिया का उदाहरण दी। उसने आयत 5 में कहा “और जैसी हम ने आशा की थी, वैसी ही नहीं वरन् उन्होंने प्रभु को फिर परमेश्वर की इच्छा से हम को भी अपने आपको दे दिया।” [पूरी तरह से अपने व्यक्तिगत हितों की अवहेलना करते हुए, उन्होंने परमेश्वर की मर्जी से निर्देशित होने के लिए अपने आप को जितना संभव हो सके उतना दिया।]
यह मुझे अचम्भित करता है, क्योंकि उन्होंने केवल अपना धन ही नही दिया – पर उन्होंने अपने आप को दिया।
मैं अचम्भा करती हूँ कि हम से कितने अपने नाम लिख कर उन्हें भेंट की थाली में डालने के इच्छुक होंगे। रोमियों 12:1 कहती है कि हमें अपने आप को पूरा परमेश्वर को बलिदान चढ़ाना चाहिए।
पर इसका अर्थ यह है कि कोई भी जिसे परमेश्वर आपके मार्ग में लाता को प्रेम करने के लिए तैयार होना। इसका अर्थ यह है कि कोई भी स्रोत जो आपके पास है उसको उसके राज्य के लिए इस्तेमाल करने के इच्छुक होना।
इसलिए अगली बार जब आप कलीसिया में होंगे और भेंट की थाली आपके पास आए, मैं आपको उत्साहित करती हूँ कि आप परमेश्वर को बताएं कि आप स्वयं को सारा का सारा उसे दे रहे है।
आरंभक प्रार्थना
परमेश्वर, मैं सब जो मैं हूँ को आपको देती हूँ। मैं स्वयं को एक जीवित बलिदान करके चढ़ाती हूँ। मुझे दिखाएं कि आप कैसे चाहते है कि मैं उन स्रोतों को आपकी महिमा के लिए इस्तेमाल करूँ जो आपने मुझे दिए है।