उसने कहा, तेरा नाम अब याकूब नहीं, परन्तु इस्राएल होगा, क्योंकि तू परमेश्वर और मनुष्यों से भी युद्ध करके प्रबल हुआ है। -उत्पत्ति 32:28
याकूब बहुत कमज़ोरियों वाला एक व्यक्ति था फिर भी उसने परमेश्वर के साथ लड़ाई की। वह परमेश्वर का आशीष पाने के लिए उत्साही था। परमेश्वर इस प्रकार की दृढ़ता पसंद करता है चूँकि परमेश्वर उसमें महिमा पा सका। परमेश्वर अपने लिए उन लोगों के लिए महिमा प्राप्त कर सकता है जो व्यक्तिगत कमज़ोरियों को उसके कार्यों के मार्ग पर आने नहीं देते हैं। क्योंकि परमेश्वर को हमारे द्वारा यह करने के लिए हमें पहले इस सच्चाई के साथ सामना करना होता है कि हमारी कमज़ोरियाँ है और तब हमें इस बात के प्रति दृढ़ निश्चय होना है कि वे कमज़ोरियाँ हमें प्रभावित न करें। हमारा दोष परमेश्वर को तब तक नहीं रोकती जब तक हम ऐसा नहीं करते हैं।
मैं आपसे कुछ करने के लिए कहने जा रही हूँ और यह बहुत महत्वपूर्ण है। अभी रूक जाइए और अपने बाँहों को चारों तरफ़ बाँध लीजिए और अपने आपको आलिंगनवद्ध कीजिए और ज़ोर से कहिए, “मैं स्वयं को स्वीकार करता हूँ, मैं स्वयं से प्रेम करता हूँ। मैं जानता हूँ कि मुझ में कमज़ोरियाँ और असिद्धताएँ हैं, मैं उनके द्वारा रूकूँगा नहीं।” दिन में कई बार इसको करने का प्रयास कीजिए और आप जल्द ही एक नया स्वभाव और दृष्टिकोण विकसित करेंगे।
याकूब ने प्रभु के स्वर्गदूत के साथ मल्लयुद्ध किया जिसने उसके जाँघ के नीचले हिस्से को छुआ और परिणामस्वरूप उस दिन से आगे को उसके पैरों में लंगड़ापन आ गया। (उत्पत्ति 32:24-32 देखिए) मैं हमेशा कहती हूँ कि याकूब लड़ाई के कारण लंगड़ा हुआ परन्तु वह अपने लंगड़ेपन में ही आशीषित हुआ। यह कहने का दूसरा रास्ता “परमेश्वर हमें तब भी आशीष देगा जब हम सब में लंगड़ापन हो।” (असिद्धता हो) स्मरण रखिए परमेश्वर हमारे हृदय को देखता है। यदि हम उसमें विश्वास रखते हैं और ऐसा हृदय जो सही करना चाहता है, हमें केवल इतना करने की ज़रूरत है कि परमेश्वर की आशीषों को प्राप्त करें।