आगे बढ़ते रहें

आगे बढ़ते रहें

इसी कारण मैं तुझे सुधि दिलाता हूँ कि तू परमेश्‍वर के उस वरदान को जो मेरे हाथ रखने के द्वारा तुझे मिला है प्रज्ज्वलित कर दे। 2 तीमुथियुस 1:6

हमारे आध्यात्मिक जीवन में हम या तो आक्रामक रूप से उद्देश्य से भरकर आगे बढ़ रहे हैं, या हम पीछे की ओर खिसक रहे हैं। स्थिर मसीहियत जैसी कोई चीज ही नहीं होती है। आगे बढ़ते रहना जरूरी है। इसीलिए तीमुथियुस को निर्देश दिया गया था कि वह लौ को जलाए रखें और उस उत्साह को फिर से जगाए जो किसी समय उसके दिल में भर हुआ था। वह थक गया था, और वह आग जो किसी समय उसमें प्रज्ज्वलित थी, अब एक मंद झिलमिलाहट बन गई थी।

शायद डर की वजह से तीमुथियुस एक कदम पीछे हट गया था। निश्चित रूप से यह समझना आसान है कि तीमुथियुस ने अपना साहस और आत्मविश्वास क्यों खो दिया होगा। यह अत्यधिक उत्पीड़न का समय था, और उसका गुरु पौलुस जेल में था। तौभी पौलुस ने तीमुथियुस को स्वयं को उत्तेजित करने, पटरी पर वापस आने, उसके जीवन की बुलाहट को याद करने, भय का विरोध करने, और परमेश्वर ने उसे सामर्थ्य और प्रेम और संयम की आत्मा दी है यह याद दिलाने के लिए दृढ़ता से प्रोत्साहित किया था।

जब भी हम डर को अपने ऊपर हावी होने देते हैं, तब हम पीछे की ओर खिसकने लगते हैं। डर हमारी प्रगति को रोकता है और हमें आक्रामक रूप से आगे बढ़ने के बजाय हमारे अंदर पीछे मुड़कर भाग जाने की इच्छा उत्पन्न करता है। यदि आप अनिश्चित हैं, संदेह से भरे हैं, या आज भी डर महसूस कर रहे हैं, तो तीमुथियुस को लिखा हुआ पौलुस का प्रोत्साहन स्वीकार करें। अपने विश्वास को जगाएं, परमेश्वर के लिए उत्साही हो जाएं, और कभी न भूले कि वह आपके साथ है। अगर वह आपके साथ है तो चाहे चीजें कितनी भी कठिन क्यों न लगें, आप उसके द्वारा वह सब कुछ कर सकते हैं जो आपको करने की आवश्यकता है।


कभी भी, कभी भी, कभी भी…हार न मानें!

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