जो कार्य प्रारंभ किया है उसे समाप्त करें

जो कार्य प्रारंभ किया है उसे समाप्त करें

क्योंकि हम मसीह के भागीदार हुए हैं, यदि हम अपने प्रथम भरोसे पर अंत तक दृढ़ता से स्थिर रहें।  – इब्रानियों 3:14

इसलिए अपना हियाव न छोड़ो क्योंकि उसका प्रतिफल बड़ा है। -इब्रानियों 10:35

पर हम बहुत चाहते हैं कि तुम में से हर एक जन अंत तक पूरी आशा के लिए ऐसा ही प्रयत्न करता रहे। -इब्रानियों 6:11

उपरोक्त सभी वचनों पर मनन किया जाना और बहुत गंभीरता से लिया जाना चाहिए। परमेश्वर हमारी उन प्रारंभ करने वाली बातों में रुचि नहीं रखता जो कभी समाप्त नहीं होती। प्रारंभ करना आसान होता है परंतु समाप्त करने में बड़े साहस की आवश्यकता होती है। किसी नई बात के प्रारंभ में हम बहुत अधिक उत्तेजित हो जाते हैं। हमारा समर्थन करने के लिए (हमारी और हर किसी की) बहुत सी भावनाएँ होती है। जब भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं और तब रह जाता है कठोर परिश्रम और अत्यधिक संयम की आवश्यकता, और हम पाते हैं कि सच्ची सफ़लता पाने के लिए यह किसके पास है।

परमेश्वर के मन में हम कभी भी सफ़ल नहीं हैं यदि हम मार्ग में कहीं रुक जाते हैं। वह चाहता है कि हम अपने कार्य को पूरा करें और इसे आनंद से करें। यदि आप हाल ही में हार मानने की परीक्षा में पड़े हो – तो ऐसा न करें! यदि आप यह कार्य पूरा नहीं करते हैं जिसमें अभी आप लगे हैं तो अगला जो कार्य आप प्रारंभ करते हैं उसमें भी आप ऐसी ही चुनौती का सामना करेंगे।

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