संतुष्ट हों

संतुष्ट हों

तुम्हारा स्वभाव लोभरहित हो, और जो तुम्हारे पास है उसी पर सन्तोष करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, “मैं तुझे कभी न छोडूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।” -इब्रानियों13:5

संतुष्टि पहले से आपके पास जो है उसके साथ प्रसन्न रहने का एक निर्णय है। परन्तु मैं इस बात के कायल हूँ कि अधिकांश लोग सच में संतुष्ट नहीं हैं। अविश्वासी निश्चय ही संतुष्ट नहीं हैं, चाहे वे इसे समझें या नहीं, परन्तु यह दुःखद है कि बहुत से विश्वासियों ने अपनी परिस्थिती में संतुष्ट रहना नहीं सीखा है। मुझे नहीं मालूम कि कितने लोग सच्चाई के साथ कह सकते हैं, “कि मैं अपने जीवन से खुश हूँ। मैं अपने जीवन साथी और परिवार से प्यार करती हूँ। मैं अपनी नौकरी पसंद करती हूँ। मैं अपने घर और अपनी गाड़ी से संतुष्ट हूँ। ऐसी बातें हैं जो मैं चाहती हूँ कि परमेश्वर मेरे लिए करे परन्तु मैं तब तक इंतज़ार करने के लिए संतुष्ट हूँ जब तक परमेश्वर अपने समय पर उसे नहीं करता। मैं अपने पड़ोसी की किसी भी वस्तु का लालच नहीं करती। मुझे किसी से ईष्र्या नहीं है और नहीं मुझे जलन है दूसरों को देखकर। यदि परमेश्वर ने उन्हे वह दिया है तो मैं चाहती हूँ कि वे उसका आनंद उठाए।”

मैं विश्वास करती हूँ कि परमेश्वर इस प्रकार हमें परखता है। जब तक हम उसके “मैं तुम्हारे लिए खुश हूँ क्योंकि तू धन्य है” की परीक्षा पास नहीं करते तब तक आप अभी जो कुछ आप के पास है उससे अधिक पाने नहीं जा रहे हैं। हाँ, परमेश्वर चाहता है कि हम हर प्रकार से समृद्ध हों। वह चाहता है कि लोग उसकी भलाई को और किस प्रकार अच्छी रीति से वह हमारी देखभाल करता है यह देखें। परन्तु हमें परमेश्वर की आशीषों से अधिक उसकी अभिलाषा करनी चाहिए। इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए वह हमें परखता है कि यह बात है इससे पहले कि वह हमारे जीवनों में बड़ी आशीषें दे।

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