सीमाओं का एक उद्देश्य होता है!

सीमाओं का एक उद्देश्य होता है!

तू अपनी समझ का सहारा ना लेना, वरन् सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा। -नीतिवचन 3:5-6

आत्म-नियंत्रण और आत्म-अनुशासन का अभ्यास करना, और हमारे जीवनों में सीमाएं और सरहदों को स्थापित करना कुछ सबसे महत्वपूर्ण बातें हैं जो हम कर सकते है। एक जीवन जिस में अनुशासन नहीं वह जीवन है जो लापरवाही से भरा हुआ है।

परमेश्वर का वचन हमें परमेश्वर के सुरक्षित क्षेत्र में रखने के लिए आवश्यक सीमाओं को स्थापित करता है। यह हमें बताता कि हम क्या कर सकते और सुरक्षित रहने के लिए हमें क्या करना चाहिए।

मसीही होते हुए हम सोच सकते हैं कि किनारे पर जीवन व्यतीत करना, उत्साहित करने वाला होता है। हमें यह तस्वीर पसन्द होती है “हां! मैं हूँ! किनारे पर जीवन व्यतीत कर रही हूँ!” यह जीवन को देखने का एक प्रसिद्ध ढंग बन गया है। पर ईमानदारी से देखें, तो परमेश्वर नहीं चाहता कि हम किनारे पर रहें, क्योंकि अगर हम किनारे पर रह रहे है, तो हमारे पास गलती के लिए कोई जगह नहीं होती।

महा मार्गो पर रेखाएं होती है, दोनों तरफ एक और फिर बीच में भी एक। यह रेखाएं जब हम गाड़ी चला रहे होते है तो हमारी सुरक्षा के लिए गुंजाइश रखती है। अगर हम एक रेखा को पार कर जाएंगे, तो हम गढ़हे में जा गिरेंगे। अगर हम मध्य में दी रेखा को पार करें, तो हम मारे जा सकते है। हमें वह रेखाएं पंसद होती है क्योंकि वह हमें सुरक्षित रखने में हमारी सहायता करती है।

यह हमारे व्यक्तिगत जीवनों में भी ऐसा ही है। जब हमारे पास सीमाएं, सरहदें, और किनारे होते है, हम ज्यादा अच्छा महसूस करते और परमेश्वर की शांति का अनुभव करते है।
कुंजी परमेश्वर के वचन में जाना है, जहां उसने हमारे जीवन व्यतीत करने की सभी सीमाएं रखी हुई है। परमेश्वर को प्रत्येक दिन आपके मार्ग की अगुवाई करने दें।


आरंभक प्रार्थना

परमेश्वर, मैं मेरे जीवन में सीमाओं की आवश्यकता को पहचानती हूँ। जब मैं आपका वचन पढ़ती हूँ, मुझे दिखाएं कि कैसे आपकी सेहतमंद सीमाओं को मेरे जीवन में आज लागू करना है।

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