स्वयं से कहते रहिए

स्वयं से कहते रहिए

एक स्त्री थी, जिसको बारह वर्ष से लहू बहने का रोग था। उसने बहुत वैद्यों से बड़ा दुःख उठाया, और अपना सब माल व्यय करने पर भी उसे कुछ लाभ न हुआ था, परन्तु और भी रोगी हो गई थी। वह यीशु की चर्चा सुनकर भीड़ में उसके पीछे से आई और उसके वस्त्र को छू लिया, क्योंकि वह कहती थी, “यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।” –मरकुस 5:25-28

लहू बहानेवाली स्त्री के विषय में क्या है? उसे यह समस्या बारह वर्षों से थी। उसने बहुत दुःख सहा था और कोई भी उसकी सहायता नहीं कर पाया था। निश्चय ही इस महिला पर आशाहीनता के विचार का आक्रमण हुआ था। जब उसने यीशु के पास जाने का विचार किया निश्चय ही उसने सुना होगा, “क्या फायदा?” परन्तु वह उस बड़ी भीड़ को दबाती हुई आगे बढ़ती गई जो चारों तरफ़ से घिरी हुई थी और जिसमें दम घुटता था। उसने यीशु के वस्त्र को कोर को छुआ, चंगाई की सामथ्र्य उसकी तरफ़ बढ़ी और वह अच्छी हो गई। (29-34 पद देखें) परन्तु वहाँ पर भाग है जो हम खोना नहीं चाहते। “क्योंकि वह कहती थी, यदि मैं उसके वस्त्र ही को छू लूँगी, तो चंगी हो जाऊँगी।” (मरकुस 5:28)

वह कहती रही! वह कहती रही! क्या आपने इसे समझा? वह कहती रही! चाहे उसे कैसा भी महसूस हुआ हो, चाहे अन्य लोगों ने उसे निराश और अनुत्साहित करने का कितना भी प्रयास किया हो, चाहे समस्या बारह वर्ष पुरानी हो, और भीड़ में घुसना असंभव लगता हो इस महिला ने अपने आश्चर्यकर्म को प्राप्त किया। यीशु ने उससे कहा कि उसके विश्वास ने उसे संपूर्ण बनाया है (पद 34)। उसके शब्दों के द्वारा उसका विश्वास प्रगट हुआ। विश्वास को यदि कार्य करना है तो उसे सक्रिय किया जाना है। और उसे सक्रिय करने के रास्तों में से एक हमारे शब्दों में से एक है, कहते रहिए-और आशा मत छोड़िए!

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