
अतिथि सत्कार (भाईचारे में – मित्रवत होने, स्नेहपूर्ण होने, और अनुग्रहपूर्ण होने, आपके घर की सुविधाओं को बाँटने के द्वारा,और आपके भाग को कृपालुता के साथ करने के द्वारा) करना न भूलना, क्योंकि इसके द्वारा कुछ लोगों ने अनजाने में स्वर्गदूतों का आदर सत्कार किया है। -इब्रानियों 13:2
एक गूट एक समूह होता है जिसमें हर किसी का स्वागत नहीं होता है। उस ‘‘में’’ होना हमें महत्वपूर्ण महसूस कराता है परन्तु उसमें से ‘‘बाहर’’ होना बहुत दुःखदायी होता है। मैं पाती हूँ कि कलीसिया भी गूटों से भरपूर है।
प्रभु यीशु मसीह के विश्वासियों के रूप में मैं और आप परमेश्वर के वचन में निर्देशित किए गए हैं कि अजनबियों का स्वागत करो, उनके प्रति आपेक्षिक भाव रखो और किसी भी प्रकार उनसे दुर्व्यवहार मत करो। यह विशेष करके कलीसिया में महत्वपूर्ण है। मैं चकित होती हूँ कि कितने ही लोग अन्ततः रविवार की सुबह कलीसिया में आने का साहस करते हैं परन्तु कभी भी इसलिए वापस नहीं जाते कि यदि वहाँ पर प्रत्येक ने उनको अनदेखा किया।
सभी कलीसियाएँ ठण्डी और बेपरवाह नहीं हैं। बहुत सारी कलीसियाएँ गरम, मित्रवत और प्रेमी हैं और वे ही हैं जो बढ़ेंगे। हर एक स्वीकृत होना और स्वागत किए जाना, और प्रेम किए जाना चाहता हैं। परमेश्वर ने इस्राएलियों को विशेष निर्देश दिए कि अजनबियों से गलत व्यवहार न करें या पीड़ा न पहुँचाए। उनसे कहा, यह कहते हुए, जब वे मिश्र में एक समय स्वयं अजनबी थे। (निर्गमन 22:21)
हम सब कार्य स्थल पर या एक स्कूल में, या एक पड़ोस में या एक कलीसिया में अजनबी थे। हमें स्मरण चाहिए कि हमने उन लोगों की कितनी प्रशंसा की होगी जो हमारे साथ मित्रवत व्यवहार करने में पहल करते थे। हमें हमेशा यह सुनेहरा नियम याद करना है, ‘‘दूसरों से वैसा व्यवहार करो जैसा तुम अपने लिए उनसे चाहते हो।’’ (लूका 6:31)