प्रतिदिन के उत्तर - Everyday Answers

दूरदर्शिता (चतुराई) दबाव के मूल

दूरदर्शिता (चतुराई) दबाव के मूल

दूरदर्शिता (चतुराई)

मैं जो बुद्धि हूँ, सो चतुराई से बात करती हूँ । नीतिवचन 8:12

एक शब्द जिसके बारे में सिखाया नहीं जाता है और जिसकी चर्चा नीतिवचन में की गई है वह है चतुराई दूरदर्शिता (या चतुर होना)। “चतुराई” का अर्थ है “सावधान व्यवस्था”। बाइबल में चतुराई का अर्थ है परमेश्वर द्वारा दिए गए भेटों की सही तरह से देखभाल या परिचायक होना। वे भेंट है समय, शक्ति, समार्थ, स्वास्थ्य व अन्य चीज़ें। इनमें हमारे शरीर, मन और आत्मा भी शामिल हैं।

जिस प्रकार हम सबको अलग-अलग भेंट दिए गए है उसी तरह उन्हे सम्भालने के लिए अलग अलग समार्थ भी दिया गया है। हममे थोड़े अच्छा प्रबन्ध कर सकते है दूसरों के बदले।

हम में से हर एक को यह जानना ज़रूरी है कि हम कितना सम्भाल सकते हैं। जब हम “पूरी सीमा” तक पहुँचने लगते हैं तो हम में इसे पहचानने कि क्षमता होनी चाहिए। हमारी क्षमता से अधिक दबाव सहने या दूसरों को खुश करने या हमारे खुद के लक्ष्यो के लिए परिश्रम करने से अच्छा है कि हम परमेश्वर कि आवाज़ सुनें और उसकी बात को माने जो वह हमसे कह रहा है। हमें बुद्धि का पीछा करना चाहिए आशीष भरा जीवन का आनंद लेने के लिए।

कोई भी हमारे जीवन से दबाव देने या दबाव बढ़ाने वाले चीज़ों को अलग नहीं कर सकते। इस कारण हमें दबाव देने और बढ़ाने वाले चीज़ों को पहचान कर और उनका सही प्रकार सामना कैसे करें हमें यह जानना चाहिए। हमारे सीमाओं को जानकर हमें “न” कहना चाहिए अपने आप को और दूसरे लोंगों को भी।

दबाव के मूल

कुछ भी दबाव का मूल बन सकता है।

उदाहरण, किसी दुकान में जाकर ज़्यादा दामों को देखकर निराश होना भी दबाव का कारण हो सकता है।

खरीदे हुए चीज़ों का दाम चुकाने प्रक्रिया भी दबाव का कारण हो सकता है। यदि आप को यह मालूम पड़ना है कि आपके चुने पाँच चीज़ों पर दाम नही है तो दुकानदार उन चीज़ों का दाम निर्णय करने तक आपके पीछे कतार बढ़ जाता है।

दबाव का और एक कारण आपके वाहन का खराब होकर बीच रास्ते में रूक जाना हो सकता है।

यदि इन दबाव के कारणों को सही तरह से निपटा नहीं गया तो एक-एक कर वे बढ़ते जायेंगे और हमें तोड देंगे। क्योंकि हम दबाव देने वाले कारणों से छुटकारा नही पा सकते या उन्हे कम नही कर सकते, इसलिए उनके द्वारा होने वाले नुकसान पर हमें ध्यान देना चाहिए। हमें रोमियों 12:16 का आज्ञापालन करना चाहिए: “…परन्तु दीनो के साथ संगति रखो।” यदि हम अपने परिस्थितियों पर नियत्रंण नही पा सकते तो उन्हें हमारे ऊपर दबाव भी डालने नही देना चाहिए।

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