परमेश्वर…सामर्थी है (अपनी योजनाओं और) कि हमारी विनती और समझ से कहीं अधिक (अनंत रूप से हमारी उच्च प्रार्थनाओं, अभिलाषाओं, विचारों, आशाओं या स्वप्नों से परे) (साहस) काम कर सकता है, और सामर्थ्य के अनुसार जो हम में कार्य करता है। – इफिसियों 3:20
जब मैं प्रार्थना करती या उन सब लोगो पर मनन करती हूँ जो पीड़ित हैं, जो मुझ में उन सब की सहायता करने की इच्छा बलवती होती है। उस समय मैं महसूस करती हूँ कि मेरी अभिलाषा मेरी योग्यता से अधिक है, और यह है-परन्तु यह परमेश्वर की योग्यता से बढ़कर नहीं है। जब वे बातें जो हम अपने जीवन में या सेवकाई में सामना करते हैं हमारी आँखों में बहुत बड़ी दिखाई देती है कि हमारा मन ‘‘झुक” जाता है तब हमें आत्मा में सोचने की ज़रूरत होती है।
स्वभाविक रूप से बहुत सी बातें असंभव हैं, परन्तु अलौकिक रूप से आत्मिक क्षेत्र में परमेश्वर के लिए कुछ भी असंभव नहीं है। परमेश्वर चाहता है कि हम बड़ी बातों के लिए विश्वास करें और बड़ी योजनाएँ बनाएँ और उससे बड़ी बातें करने की अपेक्षा करें कि हमारे मुँह आश्चर्य से खुलें जाएँ। याकूब 4:2 हम से कहता है कि हमारे पास नहीं है क्योंकि हम माँगते नहीं है। हमें अपने माँगने में साहसी होना चाहिए।
कभी कभी मेरी सभाओं में लोग मेरे पास वेदी पर प्रार्थना के लिए आते हैं और नम्रता पूर्वक पूछते हैं कि वे दो विषयों का निवेदन दे सकते हैं। मैं उनसे कहती हूँ कि वे परमेश्वर से सब कुछ माँग सकते हैं जो वे चाहते हैं जब तक कि वे उस पर भरोसा करते हैं कि वह अपने समय पर कार्य करेगा। यह अनकही बात है कि लोग क्या कर सकते हैं-लोग जो कुछ भी करने के योग्य नहीं दिखते हैं।
परमेश्वर सामान्यतः ऐसे लोगों को नहीं जो सक्षम हैं, यदि वह ऐसा करता वह महिमा नहीं पाता। वह सामान्यतः ऐसे लोगों का चुनाव करता है जो स्वाभाविक हैं, महसूस करते हैं कि वे पूरी रीति से अपने ऊपर हैं। परन्तु जो भीतर खड़े होने और विश्वास के साथ ही कदम उठाने के लिए तैयार हैं, जब वे परमेश्वर से दिशा पाने के लिए या निर्देश पाते हैं। हम प्रायः तब तक इंतज़ार करना चाहते हैं जब तक हम तैयार न हों, इससे पहले कि हम कदम बाहर रखें। परन्तु यदि हम ‘‘तैयार महसूस”करते हैं तब हम परमेश्वर पर भरोसा रखने के बजाए स्वयं पर भरोसा रखते हैं।
अपनी कमज़ोरियों को जानो और परमेश्वर को जानो-उसकी सामर्थ्य और विश्वासयोग्यता को जानो। इन सब के ऊपर हार मानने वाले मत बनो।