
तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा। -भजन संहिता 73:24
हम विश्वास करते हैं कि परमेश्वर भला है कि वह हमारे जीवनों पर नियन्त्रण भी रखता है। इसीलिए जब वे समस्या हमारे जीवन पर आती हैं या नुकसान होता है तो हम नहीं समझ पाते कि परमेश्वर ऐसी बातों को हमारे साथ होने से क्यों नहीं रोकता है और हमें इतनी बुरी बातों से क्यों गुज़ारता है।
शोकजनक नुकसान का सामना करने के बाद हम क्रोधित हो जाते हैं और पूछते हैं, ‘‘क्या परमेश्वर सामर्थी और भला है? वह क्यों बुरी बातें अच्छे लोगों के साथ होने देता है?” यह मुद्दा तब बड़ा हो जाता है जब हम जो परमेश्वर के निज संतान हैं वे दुःख उठाते हैं।
ऐसे समय पर कारणों को ज़ोर से चिल्लाना पड़ता है, ‘‘इसका कोई अर्थ नहीं दिखता है।” पुनः बार बार वही प्रश्न, ‘‘क्यों परमेश्वर, क्यों?” क्यों यातनाएँ, हम लोगों पर जो अपने जीवन में नुकसान ही नुकसान उठा रहे हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे एकाकी और त्यागे हुए लोगों को यातना दी जाती है। कारणों को ढूँढ़ना और ऐसे बातों का अनुमान लगाना जिस के लिए हम उत्तर देने योग्य नहीं होंगे। यातनाएँ अधिक संदेह पैदा करती हैं; परन्तु नीतिवचन 3:5-6 हम से कहता है, कि प्रभु पर भरोसा करना निश्चयता और दिशा ज्ञान लाता हैः ‘‘तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन् संपूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिए सीधा मार्ग निकालेगा।”
जब हम जीवन में विपत्ति का सामना करते हैं, तो हमें अगुवाई की ज़रूरत होती है। यह वचन हमें कहते हैं कि परमेश्वर पर भरोसा रखना दिशा पाने का तरीका है। भरोसा अपने जीवन में कुछ अनुत्तरित प्रश्नों को होने देने की अपेक्षा करता है!
आप किसी विपत्ति या नुकसान से चाहे कितनी बुरी तरीके से घिरे हुए हों, पवित्र आत्मा आपको एक गहरी शांति दे सकती है जो किसी न किसी प्रकार सब कुछ ठीक हो जाएगा। परमेश्वर पर भयभीत होना अनोपयोगी है, क्योंकि वही एक मात्र है जो सहायता कर सकता है।