अपनी चिन्ताएँ परमेश्वर पर डालना

अपनी चिन्ताएँ परमेश्वर पर डालना

इसलिये परमेश्वर के बलवन्त हाथ के नीचे दीनता से रहो, जिस से वह तुम्हें उचित समय पर बढ़ाए अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उसको तुम्हारा ध्यान है।- 1 पतरस 5:6-7

यह महत्वपूर्ण है कि हम स्वयं को दीन करना सीखें और परमेश्वर पर अपनी चिन्ताएँ डालें। हमें यह विश्वास करने में संघर्ष नहीं करना चाहिये कि परमेश्वर चाहता है कि हम अपने सारे चिन्ताओं को क्रूस के तले डाल दें। जैसे उसने अपने वचन में हमे ऐसा ही करने के लिये बहुत स्पष्ट रीति से कहा है।

‘‘डालो’’ शब्द का अर्थ है, फेंकना, भेजना, पहुँचाना या उण्डेल देना इत्यादि। यह सारे शब्द ताकतवाले या शक्ति लगानेवाले शब्द हैं। हम में से कुछ लोगों के लिये यह विश्वास करना कठिन लगता है कि परमेश्वर चिन्ता को भी एक पाप के समान देखता है। इसलिये हमें वास्तव में अपने चिन्ताएँ परमेश्वर के ऊपर डालने के प्रति आत्मिक रूप से हिंसक होना है और परमप्रधान के छुपने के स्थान में बने रहना है।

वास्तव में मुझे अपराधवोध और दोष भावना से मुक्त होने में वर्षों लग गए। मैं मानसिक और आत्मिक रूप से जानती थी कि मैं मसीह में परमेश्वर की धार्मीकता बनाई गई हूँ। क्योंकि उसने मेरे लिये कलवरी पर जो काम किया था। परन्तु इस बात को स्वीकार करना मेरे लिए कठिन था और उसमें मैं भावनात्मक रूप से जीना। शैतान लगातार मेरे भावनाओं में आक्रमण करता रहा और मुझे अपराध, दोषभावना से भरता रहा। मैं अपने अथित के विषय में चिन्तित रहती थी-मैं कैसे इस पर विजय पा सकती हूँ? मैं इन विचारों के विरूद्ध वर्षों तक युद्ध करती रही, जब तक मैं उस से थक नहीं गई। मैंने शैतान से कहा, ‘‘नहीं, मैं तुम्हारे झूठ पर विश्वास नहीं करने जा रही हूँ! यीशु ने मुझे परमेश्वर की धार्मीकता बनाया है, और मैंने अपना मन बना लिया है कि मैं उन बातों को प्राप्त करने जा रही हूँ, जिस के लिये यीशु मरा। मैं बाइबल से जानती हूँ, कि परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के रक्त बहाने के द्वारा मेरा संबन्ध परमेश्वर के साथ सही हो गया है। मैं उन बातों पर अपना ध्यान केन्द्रित करने का भरसक प्रयास करती रही कि, यीशु ने मेरे लिये क्यों बलिदान दिया? मैंने वचन का अंगिकार किया। परन्तु शैतान मेरे मन पर और मेरे भावनाओं पर लगातार आक्रमण करता रहा जब तक मुझ में एक पवित्र क्रोध भर नहीं गया जो मुझे अन्ततः छुटकारा दिया।

मैं इतना क्रोधित हो गई कि मैं अधिकारों, शक्तिाओं और ऊँचे स्थान के दुष्टताओं के विरूद्ध उठ खड़ी हुई। जो मुझे उन आशीषों का आनन्द उठाने से रोकती थी जो परमेश्वर ने मेरे लिये ठहराई थी। बहुत बार हम अन्य लोगों के प्रति पागल हो जाते हैं। जब कि हमारे क्रोध को हमारी समस्याओं के श्रोत – शैतान और उसके दुष्टात्माएँ – की तरफ निर्देशित किया जाना चाहिए।

जैसे शैतान पर क्रोध करना एक धार्मिक हिंसा का रूप हो सकता है, वैसे ही अपनी चिन्ताओं को प्रभु पर डालना भी होता है। हम शैतान का चिन्ता और व्याकुलता का और अपराधवोध और दोषभावना का तब तक प्रतिरोध नहीं कर सकते हैं, जब तक हम इतना ऊब न जाएँ कि हम पवित्र भय के साथ प्रतिक्रिया न दिखाएँ। जब वह हम पर अपना बोझ उठाने के लिये दबाव डालता है, हम उसे उसी के स्थान पर रोक सकते हैं और कह सकते हैं, ‘‘नहीं, मैं यह बोझ नहीं उठाऊँगा। मैं यह प्रभु के ऊपर डालता हूँ।’’

प्रत्येक के पास कुछ आत्मिक मुद्दे होते हैं, जिनका एक बार और हमेशा के लिये हल ढूँढ़ना आवश्यक है। हमारे मुद्दे चाहे जो भी हों, जो हमें परमेश्वर द्वारा ठहराएँ गए आनन्द, शान्ति और विश्राम की पूर्णता में चलने से रोकती हैं। उन्हें प्रभु पर डालने की आवश्यकता है।

पतरस अपनी चिन्ताओं को परमेश्वर पर डालने को कहता है। चिन्ता शब्द के लिये 1 पतरस 5:7 में जिस शब्द का अनुवाद किया गया है, उसका तात्पर्य है ‘‘विभिन्न दिशाओं में खींचना, ध्यान भंग करना।’’ शैतान हमारी चिन्ता क्यों करता है? उसका संपूर्ण उद्देश्य परमेश्वर के साथ हमारा संबन्ध भंग करना है। जब शत्रु हम पर समस्या डालने का प्रयास करता है, तब हमारे पास उन्हें लेकर प्रभु पर डालने का अवसर है। यदि आप उन्हें फेंकते हैं तो परमेश्वर उन्हें पकड़ लेता है और उन्हें दूर ले जाता है। परमेश्वर जानता है कि उन चिन्ताओं को कैसे मिटाया जाए जो शैतान हमारे ऊपर डालता है। अपनी चिन्ताएँ परमेश्वर पर डालना परमेश्वर ने दो अद्भुत हथियारों का प्रबन्ध किया है, जिनका उपयोग आप शैतान की योजनाओं पर विजय पाने के लिये कर सकते हैं। पहला, संपूर्ण रूप से परमेश्वर की ओर मुड़ने के द्वारा आप स्वयं को दीन करें, और तब जब शैतान आप पर चिन्ताओं का या अन्य भारी बोझ डालने का प्रयास करता है तब आप उसे परमेश्वर पर डाल देते हैं – जो उसे लेने में प्रसन्न है, क्योंकि वह आपकी चिन्ता करता है।

जब मैंने चिन्ता के विषय में विचार किया, तब मैंने पाया कि यह हमारे द्वारा होनेवाला घमण्ड का एक कार्य है। वे जो चिन्ता करते हैं, वे सोचते हैं कि वे अपनी स्वयं की समस्या का हल कर सकते हैं। क्या यह घमण्ड नहीं है? क्या मैं स्वयं से नहीं कह रहा हूँ, ‘‘मैं इसे स्वयं कर सकता हूँ?’’ वे जो घमण्डी हैं, और आत्म संतृप्त हैं, सोचते हैं कि वे मजबूत हैं और अपनी समस्याओं को स्वयं पराजित कर सकते हैं। सच में नम्र वे लोग हैं, जो अपनी कमजोरी को जानते हैं और अपनी कमजोरी में भी वे जानते हैं कि उनकी सामर्थ यीशु मसीह में है।

पौलुस ने इसे समझा और कुरिंन्थि के विश्वासियों को लिखा, ‘‘और उसने मुझ से कहा मेरा अनुग्रह (मेरी दया और प्रेम में करूणा) तेरे लिये बहुत (किसी भी खतरे के विरूद्ध काफी और जो तुम्हें समस्या का सामना करने के योग्य बनाती है) है; क्योंकि मेरी सामर्थ (तेरी) निर्बलता में सिद्ध (परिपूर्ण और पूर्णता के साथ) होती है, इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूँगा कि मसीह (अभिषिक्त) की सामर्थ मुझ पर छाया (तम्बू डालकर विश्राम देता है) करती रहे।’’ (2 कुरिन्थियों 12:9)।

प्रभु को देने के बजाय जब हम अपनी बोझ को स्वयं के कन्धों पर उठाने का प्रयास करते हैं, तब हम परमेश्वर को पराजित करते हैं। केवल परमेश्वर हमें छुड़ा सकता है, और चाहता है कि हम इस बात को जानें। वह चाहता है कि प्रत्येक परिस्थिति में हम स्वयं को दीन करें, और शैतान के द्वारा हम पर डाले गए चिन्ताओं और समस्याओं को फेंक दें। यह सम्भव है – वास्तव में यह एक आज्ञा है। मैं आपको उत्साहित करूंगी कि आप स्वयं को परमेश्वर के हाथ में संपूर्ण रूप से दे दें और उसे अपने जीवन का संचालक बनने की अनुमति दें।

__________

प्रिय प्रभु यीशु, मैं आपका धन्यवाद करती हूँ। समस्या के आने से पहले ही आपने मुझे बताया है, कि अपनी मन की शत्रु को कैसे पराजित करूँ। उसे पराजित करने के लिये आपने मुझे स्वयं का उदाहरण भी दिया है। प्रभु यीशु आपके नाम में मुझे स्वयं को दीन बनाना और अपने सारे चिन्ताओं और बोझ को आप पर डालना सिखाएँ। आमीन्।।

Facebook icon Twitter icon Instagram icon Pinterest icon Google+ icon YouTube icon LinkedIn icon Contact icon