“क्या तुम्हारे लिए अपने छतवाले घरों में रहने का समय है, जबकि यह (प्रभु का घर) भवन उजाड़ पड़ा है? इसलिए अब सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अपनी अपनी चाल चलन पर ध्यान करो। तुम ने बहुत बोया परन्तु थोड़ा काटा; तुम खाते हो, परन्तु पेट नहीं भरता; तुम पीते हो, परन्तु प्यास नहीं बुझती; तुम कपड़े पहिनते हो, परन्तु गरमाते नहीं; और जो मज़दूरी कमाता है, वह अपनी मज़दूरी की कमाई को छेदवाली थैली में रखता है।” -हाग्गै 1:4-6
हाग्गै 1:2 के प्रारंभ में हम लोगों के समूह को देखते हैं जिनसे परमेश्वर ने अठारह वर्ष पूर्व उसके घर को बनाने के लिए कहा था। परमेश्वर ने उनसे जो करने के लिए कहा था उसके प्रति अब भी वे आज्ञाकारी नहीं थे। फिर भी वे नहीं समझते कि उनका जीवन क्यों इतनी मुसीबतों से भरा हुआ है। उन्हें आश्चर्य होता था कि परमेश्वर की आशीष कहाँ है। उसके निर्देश के प्रति उनकी अनाज्ञाकारिता को स्मरण दिलाने के पश्चात् जो वचन प्रभु ने उनसे उपरोक्त पद में कहा था।
क्या यह सुनने में किसी व्यक्ति के समान लगता है जिसको आप जानते हैं? कितनी बार आपने किसी को कहते हुए सुना है, “मुझे नहीं मालूम कि क्या हो रहा है परमेश्वर मैं नहीं समझता।” अब हाग्गै 1:7 में उत्तर को देखें। “सेनाओं का यहोवा तुम से यों कहता हैः अपनी अपनी चाल चलन पर सोचो।”
दूसरे शब्दों में हमारे जीवन में जो कुछ हो रहा है उससे यदि हम संतुष्ट नहीं हैं तो शायद हमें पीछे मुड़कर देखना और परमेश्वर को हमें दिखाने देना है कि जो मार्ग हमने चलने के लिए चुना है उसने किस प्रकार से इस बात को प्रभावित किया है जो अब हमारे जीवन में हो रहा है। यदि हम पुराने और वर्तमान व्यवहार को बदलने के इच्छुक हैं जो हमें परमेश्वर के आशीषों से दूर रख रहे हैं तो हमारे जीवन में पहले से कहीं बढ़कर विजय आ सकती है।