अपने मन की रक्षा करना

अपने मन की रक्षा करना

सब से अधिक अपने मन की रक्षा कर; क्योंकि जीवन का मूल स्रोत वही है।- नीतिवचन 4:23

किसी भी बात की चिन्ता मत करोः परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। तब परमेश्वर की शान्ति, जो सारी समझ से परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरक्षित रखेगी।- फिलिप्पियों 4:6-7

मैं नीतिवचन के इस पद को प्रेरित पौलुसे द्वारा फिलिप्पियों को लिखे गए शब्दों के साथ संबंधित करना चाहती हूँ। हम पढ़ते हैं कि परमेश्वर हम से अपने हृदयों की चौकसी करने को कहता है – सतर्कता पूर्वक उन पर ध्यान देने के लिये कहता है। परन्तु इसका अर्थ वास्तव में क्या है? जब सारी चीजें हमारी तरीके से चल रहीं होती है और परमेश्वर हमारे जीवन पर आशीषों की वर्षा कर रहा होता है, तब शैतान के चालों के प्रति सतर्क रहना और अपने हृदय की चौकसी करने में लापरवाही करना आसान होता है।

हम सब समय – समय पर संघर्ष का सामना करते हैं। लेकिन जब हम दृढ़तापूर्वक अपने हृदय पर पहरा बैठाते हैं, तब हम इस बात को और अधिक जान जाते हैं कि, हमारे लिये परमेश्वर की योजना हमारे विजय के लिये है।

सुरक्षा शब्द पर विचार करने के बजाए मैं इस प्रकार विचार करना चाहूँगीः हमें अपने हृदय के चारों और एक पहरा बैठाने के आवश्यकता है जैसा कि ऊपर कहा गया है ‘‘सुरक्षित रखेगी’’। सोचिये कि एक सुरक्षाकर्मी या सैनिक अपने कार्य के दौरान क्या करता है? बहुत ध्यान से शत्रु के किसी आक्रमण पर निगाह रखता है। वह न केवल तैयार है, बल्कि वह शत्रु के किसी भी आक्रमण का प्रतिरोध करने के लिए सक्रिय रूप से देखता और तैयार रहता है।

इसी प्रकार हमें जीने की आवश्यकता है- एक भरोसेमन्द पहरेदार के साथ। इसका तात्पर्य यह नहीं कि हम लगातार भय में जीते या हमें लगातार यह देखने की आवश्यकता है कि शैतान आस-पास भटक तो नहीं रहा है। हमारे लिये यह करने के लिये एक सुरक्षाकर्मी की तैनाती के रूप में इसे देखिए।

हमें किस प्रकार के पहरे की आवश्यकता है? मैं दो स्पष्ट पहरे के विषय में सोचती हूँ: प्रार्थना और परमेश्वर का वचन। यदि हम प्रार्थना करते हैं कि परमेश्वर का पवित्र आत्मा हमारे हृदय पर पहरा दे, तो वह इस विनंती का आदर करेगा। जब शत्रु प्रवेश करना चाहता है, तब पहरेदार चिल्ला उठता है, और कहता है, ‘‘परमेश्वर यह कहता है।’’ और शत्रु भाग जाता है। (वास्तव में शैतान डरपोक है और खुला युद्ध नहीं करता है)।

पौलुस के शब्द फिर से पढ़िए, यदि हम अपने व्याकुलताओं को दूर भगाते हैं, (जिसे हम प्रार्थना और विनंती के द्वारा करते हैं) और अपने हृदय को धन्यवाद से भरते हैं। तो परमेश्वर की शान्ति हमारे पहरेदार होती है। शैतान की किसी भी आरोप का प्रतिरोध करने के लिये परमेश्वर हमारी सहायता करता है।

हमें धन्यवाद देना भी कम नहीं करना चाहिये। यह शैतान के उपकरणों के प्रति स्वयं को सजग रखने का एक साधारण तरीका भी है। जब हम परमेश्वर को अपने शब्दों और गीतों के द्वारा धन्यवाद देते हैं, तो हम हृदय पर बैठाते हैं। जैसे एक पुराना भजन कहता है, ‘‘आशीष गिनों गिनों नाम व नाम, आशीष गिनों देखो ख्रिस्ट के काम, आशीष गिनो गिनो नाम व नाम और तुम विस्मित होगे देखकर ख्रिस्ट का काम।’’

यह कुछ शब्दों को गाने से भी बढ़कर है। यह वास्तव में रूक कर उन सब भले कामों के विषय में सोचना है, जो परमेश्वर ने हमारे जीवन में किया हैं। जब हम अपने पुराने आशीषों में आनन्दित होते हैं, तो हम भविष्य में और अधिक आशीषों के लिये स्वयं को खोलते हैं।

कभी कभी अन्य मित्र जिन्हें हम अनदेखा करते हैं वे अन्य विश्वासी हैं। जब हम अपने कमजोरियों के प्रति सचेत होते, हैं तब हमें अन्य विश्वासियों के साथ प्रार्थना में सहमत हो सकते हैं। हम उन से विशेष रूप से प्रार्थना करने को कह सकते हैं, कि जब हम वैसा सचेत न हों जैसा होना चाहिये तब शत्रु के आक्रमण से बचाए जाएँ। अन्य विश्वासी भी हमारे लिये मध्यस्थती कर सकते हैं, जैसा हम उन के लिये करते हैं। दूसरे लोगो के लिये प्रार्थना करनेवालों से बढ़कर हम किस प्रकार का पहरा बैठा सकते हैं। शैतान ऐसी प्राथनाएँ सुनना पसन्द नहीं करता है।

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पवित्र आत्मा, मेरे हृदय के द्वार पर प्रार्थना और आपके वचन का पहरा बैठाने के द्वारा शत्रु की किसी भी आक्रमण के प्रति सचेत रहने में मेरी सहायता कर। मेरे हृदय पर किस प्रकार पहरा बैठाना चाहिये यह दिखाने के लिये आपकी स्तुति करती हूँ। और प्रार्थना करती हूँ, कि मेरा हृदय लगातार धन्यवादी हो। आमीन्।।

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