व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिए कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चैकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफ़ल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा। -यहोशू 1:8
यहोशू को अपनी यात्रा में बहुत सारे शत्रुओं का सामना करना था। एक तथ्य यह है कि ऐसा दिखता था कि यह कभी न खत्म होनेवाला एक होगा। परन्तु कृपया ध्यान दें कि यहोशू को प्रभु के द्वारा वचन को अपने मुँह में रखने का निर्देश दिया गया न कि समस्याओं को अपने मन में रखने का।
यहोशू के समान मुझे और आपको यदि अपने मार्गों को समृद्ध बनाना और अपने जीवन में अच्छी सफलता लाना है तो हमें निश्चय ही अपने विचारों और शब्दों को उन समस्याओं पर रखने के बजाए जिनका हम सामना करते हैं किसी और पर रखना है। हमें समस्याओं के विषय में सोचना, बात करना, और कभी कभी हमें समस्याओं के विषय में प्रार्थना करना भी बंद करने की ज़रूरत है। यदि हम ने प्रार्थना किया है तो परमेश्वर ने सुन लिया है। मैं नहीं कहती हूँ कि समस्याओं को कहने का अवसर नहीं है परन्तु अक्सर हम कहते हैं कि हम परमेश्वर के साथ संगति कर रहे हैं परन्तु वास्तव में हम अपनी समस्याओं के साथ संगति कर रहे होते हैं।
मरकुस 11:23 में यीशु ने अपने शिष्यों को पर्वतों से बात करने का निर्देश दिया, उसने नहीं कहा कि “पर्वतों के विषय में बात करो।” यदि ऐसा करने के पीछे कुछ उद्देश्य हो तो ऐसा करो अन्यथा उसके विषय में चुप रहना अधिक बेहतर है। शब्द भावनाओं को निचोड़ते हैं जो अक्सर हमें नर्भस करते हैं क्योंकि परिस्थितियों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। बाहर जाना और कुछ आनंददायक करना मूल्यवान है जबकि आप परमेश्वर की समस्याओं का हल करने का इंतज़ार कर रहे हैं। आप ऐसा महसूस नहीं करेंगे परन्तु ऐसा कीजिए। ये आपकी सहायता करेगा! अपने मन को और अपने मुँह को समस्याओं पर से हटा लीजिए!