क्योंकि हमारा यह मल्लयुद्ध लहू और मांस से नहीं परन्तु प्रधानों से, और अधिकारियों से, और (उन मालिक आत्माओं से हैं जो) इस संसार के अन्धकार के हाकिमों से और उस दुष्टता की आत्मिक सेनाओं से है जो आकाश में हैं। -इफिसियों 6:12
शैतान लोगों को और परिस्थितियों को इस्तेमाल करता है परन्तु वे वास्तविक शत्रु नहीं हैं, पर शैतान है। वह ऐसे लोगों को और बातों को पाता है जिसके द्वारा वह कार्य कर सके और हमें शत्रु को समझें बिना लड़ते हुए देखकर आनंदित होता है। जब शैतान ने यीशु को यरूशलेम जाने से रोकने के लिए पतरस का इस्तेमाल किया ताकि यीशु उस उद्देश्य को पूरा न कर सके जिसके लिए परमेश्वर ने उसे भेजा था। “यीशु ने मुड़कर पतरस से कहा, हे शैतान मेरे सामने से दूर हो! तू मेरे लिए ठोकर का कारण है क्योंकि तू परमेश्वर की बातों पर नहीं परन्तु मनुष्यों की बातों पर मन लगाता है।” (मत्ती 16:23 इस पर ज़ोर दें) शैतान ने पतरस का इस्तेमाल किया, परन्तु यीशु जानता था कि वास्तविक समस्या पतरस नहीं था। वह पतरस से मूड़ा और उसकी परीक्षा के श्रोत को सम्बोधित किया।
हम जो देखते हैं या प्रारंभ में हम जो महसूस करते हैं उससे परे देखने की ज़रूरत है और समस्या की जड़ को खोजने की ज़रूरत है। प्रायः हम लोगों पर आरोप लगाते और उनके प्रति क्रोधित होते हैं जो अक्सर समस्या को कठिन और निश्चित कर देता है। जब हम इस प्रकार से व्यवहार करते हैं तो हम शैतान के हाथों में खेल रहे होते हैं और उसे अपनी योजना में सफ़ल होने में सहायता करते हैं। हम परिस्थितियों और कभी कभी परमेश्वर को भी दोष लगाते हैं जो यह भी शैतान को आनंदित करता है।
हाँ, हमें अपने शत्रु को जानने की ज़रूरत है, केवल इसलिए नहीं कि वह कौन है; परन्तु इसलिए कि उसका चरित्र कैसा है। बाइबल हमें प्रोत्साहित करती है कि परमेश्वर के स्वभाव को जाने ताकि हम उसमें और वह जो कहता हे उसमें विश्वास रख सके। उसी प्रकार हमें शैतान के स्वभाव को जानना है, कि हम ध्यान न दें या उसकी चोट पर विश्वास न करें।