
इसलिए मैं जो प्रभु में बन्दी हूँ तुम से विनती करता हूँ कि जिस बुलाहट से तुम बुलाए गए (ऐसे व्यवहार के साथ परमेश्वर की सेवा की बुलाहट के लिए एक श्रेय हो) थे, (एक ऐसा जीवन जियो) उसके योग्य चाल चलो, अर्थात सारी दीनता (दीनता) और नम्रता (निस्वार्थता, सज्जनता) सहित, और धीरज धरकर प्रेम से एक दूसरे की सह लो। -इफिसियों 4:1-2
परमेश्वर ने हमसे पहले प्रेम किया और हम ने वापस उससे प्रेम किया। वह अपने प्रेम के विषय में हमें पुनः दृढ़ करता है या निश्चय दिलाता है और हम दूसरों से प्रेम करना प्रारंभ करते हैं और क्रमशः प्रेम हमारे भीतर इतना अधिक व्याप्त हो जाता है कि इस बात का कोई मतलब नहीं रह जाता है कि किसने पहले किस से प्रेम किया। इफिसियों 5:1 कहता है, “इसलिए प्रिय बालकों के समान परमेश्वर का अनुकरण करो।”
इफिसियों की पत्री इस प्रेम के पाठ को यह कहते हुए व्याख्या करता है कि हमें उपयोगी, सहायक और एक दूसरे के प्रति दयालु, कृपालु, संवेदनशील, और दूसरों के साथ समझवाले होना चाहिए। मसीह के समान बनने में स्वभाविक रूप से अपने ध्यान को दूसरों की मदद में लगाएँगे। मसीह हमारा आदर्श है जिसे हमें ग्रहण करने की ज़रूरत है।
संबंधों में कार्य करना कभी कभी बहुत दर्द वाला काम होता है, परन्तु पराजय, अभाव और उन लोगों से दूरी सहना और अधिक दुःखदायी होता है जिस से हम प्रेम करते हैं। क्योंकि हम ने उन्हें यूहीं अनदेखा किया है और बुरे बीज को बोया है। इसलिए अच्छे संबंधों को बनाने के लिए हमें सब से पहले मसीह के निकट आने और उसके समान बनने के द्वारा परमेश्वर के साथ सहमति बनानी चाहिए। एक बार जब हम यीशु को अपने संबंधों में आमन्त्रित करते हैं और जो वह कहता है उसे करते हैं, हम अपने विचारों और कार्यों में उसके बनते हैं और परिणामस्वरूप हम उसके समान प्रेमी बनते हैं और हम अच्छे संबंध को विकसित करते और बनाए रखते हैं।
स्मरण रखिए, “अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी, न कोई दास न स्वतन्त्र, न कोई नर न नारी, क्योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।” (गलातियों 3:28)