अविश्वास की अनाज्ञाकारिता

अविश्वास की अनाज्ञाकारिता

वह उसके पास धनुष और तीर ले आया। तब उसने इस्राएल के राजा से कहा, धनुष पर अपना हाथ लगा। जब उसने अपना हाथ लगाया, तब एलिशा ने अपने हाथ राजा के हाथों पर रख दिए। तब उसने कहा, पूर्व की खिड़की खोल। जब उसने उसे खोल दिया, तब एलिशा ने कहा, तीर छोड़ दे; उसने तीर छोड़ा। और एलिशा ने कहा, यह तीर यहोवा की ओर से छुटकारे अर्थात अराम से छुटकारे का चिन्ह है, इसलिये तू अपेक में अराम को यहां तक मार लेगा कि उनका अन्त कर डालेगा। फिर उसने कहा, तीरों को ले; और जब उसने उन्हें लिया, तब उसने इस्राएल के राजा से कहा, भूमि पर मार; तब वह तीन बार मारकर ठहर गया। और परमेश्वर के जन ने उस पर क्रोधित होकर कहा, तुझे तो पाँच छः बार मारना चाहिये था, ऐसा करने से तो तू अराम को यहाँ तक मारता कि उनका अन्त कर डालता, परन्तु अब तू उन्हें तीन ही बार मारेगा। – 2 राजा 13:15-19

मैं विश्वास करती हूँ यह कहना आसान है। परंतु सही जाँच तब आती है, जब हमें अपने विश्वास के अनुसार कार्य करना होता है।

इस कहानी में सीरिया के लोगों से छुटकारा पाने मे सहायता पाने के लिए राजा एलिशा भविष्यवक्ता के पास आता है। भविष्यवक्ता ने उसे कहा कि शत्रु के विरूद्ध इस्राएल के आक्रमण के संकेत के रूप में अपने सिरों को जमीन की ओर चलाएँ। परंतु केवल तीन सिरों को चलाने के बाद राजा रूक गया।

अविश्वास अनाज्ञाकारिता है। अगर राजा ने विश्वास किया होता, वह बहुत बार सिरों को जमीन पर चलाया होता। अपने अविश्वास के कारण एक अच्छी शुरूवात के बावजूद वह रूक गया। इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि उसकी इस कृति से निराश और क्रोधित हो गया।

अविश्वास की घटनाएँ पुराने नियम और नए नियम में वर्णन की गई है। जहां कहीं भी हम मूड़ते हैं हम अविश्वास को कार्य करते हए देखते हैं। मत्ती 17:14-20 में एक व्यक्ति की कहानी है जिस ने यीशु के पास अपने मिर्गी से पीड़ित बेटे को चंगाई के लिए लाया। उसनेकहा, ‘‘और मैं उस को तेरे चेलों के पास लाया था, पर व उसे अच्छा नहीं कर सके।’’ (मत्ती 17:16)।

इस लकड़े का पिता निराश और दुखी हो गया, क्योंकि चेलों में अपने अगुवे के बराबरी करने की योग्यता नहीं थी। हम भी उस से सहमत हुए होते यदि हम भी उस दिन उसके स्थान पर हुए होते। वैसे भी यीशु मसीह बहुत से महिनों से इन बारह लोगों के साथ सब जगह यात्रा कर रहे थे। यह लगातार या कई बार उसे आश्चर्यकर्म करते देख चुके थे, जहां कहीं भी वे गए। लूका 10 में हम देखते हैं कि यीशु ने चेलों को भेजा और उन्होंने कई आश्चर्यकर्म और चंगाई किये। चेले इस समय क्यों आश्चर्यकर्म नहीं कर सके? हर समय यीशु ने उन्हें उत्साहित करता कि वे बिमारों को चंगाई दें जैसा उसने किया था वैसा ही करें। फिर भी वे चंगा करने में असमर्थ हुए और यीशु ने कहा, ‘‘कि हे अविश्वासी और हठीले लोगों, मैं कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? कब तक तुम्हारी सहूँगा? उसे यहां मेरे पास लाओ।’’ (मत्ती 17:17)। यीशु मसीह ने दुष्टात्मा को भगाया और लड़का चंगा हो गया। अविश्वास अनाज्ञाकारिता की ओर ले जाता है।

लेकिन यहां पर कहानी खतम हो जाती है। जब चेले यीशु से पूछते हैं कि वे क्यों उस लड़के को चंगा नहीं कर सके? यीशु का उत्तर बहुत ही स्पष्ट था। उसने उनसे कहा, ‘‘अपने विश्वास की घटी के कारण: क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, यदि तुम्हारा विश्वास राई के दाने के बराबर भी हो, तो इस पहाड़ से कह सकोगे, कि यहां से सरककर वहां चला जा, तो वह चला जाएगा; और कोई बात तुम्हारे लिये अनहोनी न होगी।’’ (मत्ती 17:20)।

इस बात को निश्चित महसूस करती हूँ कि यीशु के उत्तर ने चेलों को अपने हृदय को जांचने के लिये मजबूर किया। और यह पूछने के लिये कि उन्होंने क्यों विश्वास नहीं किया था? सम्भवतः यीशु उनसे जैसा चाहता था उन्हें आश्चर्यकर्म करने के लिये सामर्थी किया था वे इस सत्य को ग्रहण नहीं कर पाए थे। सम्भवतः इस सत्य को ग्रहण नहीं कर पाए थे कि यीशु उन्हें आश्चर्यकर्म के लिए सामर्थी बनाया है।

निश्चय ही प्रेरितों के काम पुस्तक को पढ़ते हुए हम जानते है कि वे पवित्र आत्मा से भरे गये और शिष्यो ने परमेश्वर के अलौकिक सामर्थ को काम करते हुए प्रकट भी किया। परन्तु इस कहानी में नहीं। उसने उनसे कहा, ‘‘मैं तुम से सच सच कहता हूँ, कि जो मुझ पर विश्वास रखता है, ये काम जो मैं करता हूँ वह भी करेगा, वरन इनसे भी बड़े काम करेगा, क्योंकि मैं पिता के पास जाता हूँ।’’ (यूहन्ना 14:12)।

प्रतिज्ञा आज के लिये भी सही ठहरती है। अविश्वास हमें उन बातों को करने से रोकेगा, जिन बातों को करने के लिये परमेश्वर हमें अभिषेक किया है। यह हमें शान्ति का अनुभव करने से जैसा वह चाहता है कि हम आनन्द करें उसे रोकेगा। (मत्ती 11:28-29 देखें)। हमारी आत्मा का उस में विश्राम पाने से जैसी शान्ति वह हमें अनुभव कराने चाहता है, उस अनुभव से भी यह हमें रोकेगा।

जब परमेश्वर हम से कहता है कि हम उसे कर सकते हैं, तो हमें विश्वास करना चाहिये कि हम कर सकते हैं। यह हमारे सामर्थ या ताकत के कारण नहीं कि हम उन कार्य को करने के लिये योग्य बनते हैं जो अपने आत्मा के द्वारा कहता है जो हमारे भीतर काम करता है, कि हम विश्वास से युद्ध में जीत जाएँ।

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‘‘प्रभु यीशु, मेरे विश्वास की कमी को क्षमा करें। मैं जानती हूँ कि जब मैं विश्वास नहीं करती मैं इसके लिए आपकी आज्ञा का उलंघन कर रहीं हूँ। आप के नाम में मैं आप से माँगती हूँ कि अविश्वास के हर एक कण को आप मेरे जीवन से दूर करें। ताकि विश्वासयोग्यता के साथ आप का अनुकरण करने में मैं अपना ध्यान लगाऊं। आमीन।’’

 

 

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