क्योंकि खतनावाले तो हम ही हैं जो परमेश्वर की आत्मा की अगुवाई से उपासना करते हैं, और मसीह यीशु पर घमण्ड करते हैं, और शरीर पर (हम जो हैं उस पर) भरोसा नहीं रखते। -फिलिप्पियों 3:3
हर कोई आत्म-विश्वास के विषय में बात करता है। सभी प्रकार की सभाएँ उपलब्ध हैं। संसारिक दुनिया में और कलीसियाई दुनिया में दोनों में। भरोसे को “आत्म-विश्वास” कहा जा सकता है क्योंकि हम सब जानते हैं कि हमें अपने विषय में अच्छा महसूस करने की ज़रूरत है यदि हम जीवन में कभी कुछ करना चाहते हैं। लोगों को यह क्यों सिखाया जाता है कि उनकी मूल आवश्यकता अपने आप में विश्वास करना है। फिर भी वह एक गलत दृष्टिकोण है। वास्तव में हमें अपने आप में विश्वास करने की ज़रूरत नहीं है। हमें हममें रहने वाले यीशु पर विश्वास करने की ज़रूरत है। हम उससे अलग अपने आप में रहकर साहस नहीं करते हैं। जब प्रेरित पौलुस हमें निर्देशे देता है कि अपने “शरीर पर भरोसा न रखो।” उसका तात्पर्य है कि यह केवल इतना कह रहा, अपने आप में भरोसा न रखो या हर उस बात में जो यीशु के बगैर आप कर सकते हैं।
हमें आत्म विश्वास ही ज़रूरत नहीं है, हमें परमेश्वर पर विश्वास की ज़रूरत है! बहुत से लोग अपना संपूर्ण जीवन सफ़लता की सीढ़ी चढ़ते हुए व्यतीत करते हैं केवल इसलिए कि जो वह सबसे ऊँचाई पर पहुँच जाएँ तो देखे कि उनकी सीढ़ी गलत इमारत की ओर झुकी हुई थी। अन्य लोग संघर्ष करते हैं और अपने आप में भरोसे के नाप को विकसित करने के लिए अच्छा व्यवहार करने का प्रयास करते हैं। केवल अपनी हार को दोहराने के लिए। ये दोनों कार्य एक समान परिणाम लाते हैं, खालीपन और पीड़ा।
मैंने पाया है कि अधिकतर लोग दो प्रकारों में से एक में आते हैं: पहला, वे कभी कुछ नहीं करते हैं चाहे वे कितना भी कठोर परिश्रम करते हैं। और स्वयं पर घृणा करने के परिणाम में पहुँचते हैं क्योंकि उन्होंने कोई परिश्रम नहीं किया है। या दूसरा, उनके पास पर्याप्त स्वभाविक योग्यता है कि बड़े कार्य को कर सके। परन्तु वे अपनी सफलता के लिए सारा श्रेय लेते हैं जो उन्हें घमण्ड से भर देते हैं। परमेश्वर की दृष्टि में दोनों प्रकार से वे पराजय हैं। परमेश्वर की दृष्टि में एक मात्र सफ़ल व्यक्ति वह है जो जानता है कि वह अपने में कुछ नहीं है परन्तु सब कुछ मसीह है। हमारा गर्व, घमण्ड केवल यीशु में होना चाहिए और उसे सारी महिमा मिलनी चाहिए उन सारी सफ़लताओं के लिए जो हम प्राप्त करें।