अपने मन में उतावली से क्रोधित न हो, क्योंकि क्रोध मूर्खों ही के हृदय में रहता है। – सभोपदेशक 7:9
सभी क्रोध, चाहे कि उनके कारण कोई भी क्यों ना हो, उनका हमारे जीवनों पर एक जैसा ही प्रभाव होता है। यह हमें परेशान करता, हमें दवाब में जाने का कारण देता है। क्रोध को अन्दर ही बंद करके रखना और यह दिखावा करना कि यह अस्तित्व में नहीं है यह हमारी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। बहुत बार हम केवल स्वयं को ही दुख पहुँचा रहे होते है, और वह व्यक्ति जिसने हमें क्रोधित किया होता है उसे इसके बारे में पता भी नहीं होता है।
मैं भी इस भयानक क्रोध के साथ संघर्ष करती थी तब परमेश्वर ने मुझे सिखाया कि कैसे इसके साथ हल करना और इस पर जय पानी है, अंततः मैंने मेरे क्रोध को दूर करने का एक सकारात्मक ढंग सीखा। वो मेरे लिए नए आरंम्भ के स्थानों में से एक था।
जब आप आपके क्रोध का सामना करते और परमेश्वर के ढंग के साथ इसे हल करने का निर्णय करते है, आप इस पर जय पा सकते है। पवित्र आत्मा हमें स्थिर होने और आत्मा के फल में चलने की शक्ति देता है। हमारे पास उन्हें क्षमा करने की जो हमारे जीवनों में अन्याय करते और जो अप्रिय होते उन्हें प्रेम करने की शक्ति होती है।
इसलिए हमें हमारे क्रोध की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और इसके साथ हल करना सीखना चाहिए। इन सब को अन्दर बोतल में बंद करके रखने की बजाए, प्रभु को खोजें और इससे आजाद होने में सहायता करने के लिए कहें। इसे बाहर निकाले और इसका हल करें, और यह दबाव से मुक्त करेगा।
आरंभक प्रार्थना
प्रभु, मैं मेरे अन्दर किसी भी क्रोध को नहीं रखना चाहती हूँ क्योंकि यह मुर्खता है और यह आपको प्रसन्न नहीं करता है। मैं मेरे जीवन में क्रोध पर जय पाने के लिए आपकी सहायता को माँगती हूँ।