‘‘सेनाओं का यहोवा यों कहता है: याजकों से इस बात की व्यवस्था पूछ, ‘यदि कोई अपने वस्त्र के आँचल में पवित्र मांस बाँधकर, उसी आँचल से रोटीयाँ पकाए हुए भोजन या दाखमधु या तेल या किसी प्रकार के (क्योंकि वह परमेश्वर को बलिदान रूप में चढ़ाया गया है) भोजन को छुए, तो क्या वह भोजन पवित्र ठहरेगा” (केवल परमेश्वर को समर्पित है)? याजकों ने उत्तर दिया, ‘‘नहीं’’। (पवित्रता संक्रामक नहीं है) फिर हाग्गै ने पूछा, ‘‘यदि कोई जन मनुष्य के शव के कारण अशुद्ध होकर ऐसी किसी वस्तु को छुए, तो क्या वह अशुद्ध ठहरेगी?” याजकों ने उत्तर दिया, ‘‘हाँ, अशुद्ध (अपवित्रता संक्रामक है) ठहरेगी।’’ -हाग्गै 2:11-13
पवित्रता को ‘‘परमेश्वर के लिए अलग होने’’ के रूप में परिभाषित किया गया है, ‘‘एक अलगाव जो इस प्रकार अलग हुओं के साथ फबने वाला आचरण रखता है।’’ नया नियम में जिस शब्द का अनुवाद पवित्रता किया गया है उसी शब्द का अनुवाद पवित्रीकरण भी किया गया है जिसे यूनानी शब्दकोश ‘‘स्थानांतरित या दूषित न किया जा सकने वाला’’ कहता है। इसका तात्पर्य है कि पवित्रता एक व्यक्तिगत संपत्ति है, जिसे थोड़ा थोड़ा करके बनाया जाता है। यह किसी को दिया या किसी से लिया नहीं जा सकता है।
दूसरे शब्दों में आप और मैं किसी प्रार्थना पंक्ति में जाने या अपने ऊपर हाथ रखे जाने से या किसी अन्य पवित्र व्यक्ति की संगति करने के द्वारा पवित्र नहीं बन सकते हैं।
जैसा हम पुराने नियम के हाग्गै के इस भाग में देखते हैं अपवित्रता संक्रामक है। पवित्रता संक्रामक नहीं है। तात्पर्य यह है कि आप और मैं किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ सकते हैं जो पापमय जीवन जी रहा है और उस व्यक्ति की पापी दशा हमें अपने चपेट में ले सकती है। हम किसी बीमारी के समान इसके प्रभाव में आ सकते हैं।
परन्तु पवित्रता ऐसी नहीं है। यह संपर्क या खुलेपन के द्वारा नहीं लिया जा सकता है। इसका लक्ष्यपूर्वक चुनाव करना पड़ता है।