हम ने (महत्वपूर्ण) प्रेम इसी से जाना (प्रगतिशील रूप से पहचाना, मालूम किया, समझा) कि उसने हमारे लिए अपने प्राण दे दिए; और हमें भी भाईयों के लिए प्राण देना चाहिए। -1 यूहन्ना 3:16
पवित्र आत्मा जब किसी को प्रेम करने के लिए या किसी के प्रति प्रेम प्रदर्शित करने के लिए आप से कहता है तो आपकी अभिलाषाएँ अपने मन में रखता है। बहुत बार मैंने भीतर से यह आवाज़ सुनी है, ‘‘ऐसा करो ऐसा करो,” मैं विवाद करती हूँ, ‘‘हाँ परमेश्वर, तुम हमेशा मुझ से कुछ कहते हो। तुम डेव से कब कुछ कहने जा रहे हो?!!” मैं सोचती हूँ कि मैं ही एक मात्र हूँ जिसे हमेशा सुधारा जाता है। यदि डेव के साथ परमेश्वर व्यवहार नहीं करता होता तो मैं भी खड़ी नहीं हो पाती!
बहुत बार मैं डेव के पास गई और कही, ‘‘डेव क्या परमेश्वर तुम्हारे साथ किसी बात पर व्यवहार करता है?” डेव अपने सिर को हिलाते और कहते, ‘‘नहीं, मैं ऐसा कुछ नहीं सोचता।”
एक बार परमेश्वर ने बहुत सामथ्र्य के साथ डेव से आदरपूर्ण व्यवहार करने के बारे में बात की। फिर भी मैंने महसूस किया मानों ऐसे बहुत सारे समय रहे हों जब डेव मेरे प्रति आदरपूर्ण नहीं रहे हैं। यदि मैं डेव को अभिषेक करती जब वह बात कर रहा हो, तो पवित्र आत्मा कहती, ‘‘यह अनादर है।” मैं विद्रोहपूर्वक सोचती कि जब मैं बात करती हूँ तो वह भी तो मुझ में हस्तक्षेप करता है! वह क्यों कठोर हो सकता है और मैं क्यों नहीं!
ये शरीर को कष्ट देनेवाली बात है जब परमेश्वर कुछ करने से आपको रोकता है जब अन्य लोग कुछ करते हैं। परन्तु हममें से प्रत्येक वह करने के लिए उत्तरदायी हैं जो परमेश्वर हमें करने के लिए दिखाता है। कठोर बातें अभी करें, और आपको प्रतिफल बाद में आएगा।