उद्धार का आनंद

उद्धार का आनंद

परन्तु मैं यहोवा के कारण अपने मन में मगन होऊँगा, मैं। उसके किए हुए उद्धार से हर्षित होऊँगा। – भजन संहिता 35:9

दाऊद ने उस आनंद के बारे में बताया जो उसके प्राण ने प्रभु में और उसके उद्धार में पाया था। जैसा कि हम भजन संहिता 51:12 में देखते हैं जिसमें उसने बतशेबा के साथ पाप में गिरने के पश्चात् प्रार्थना किया। “अपने किए हुए उद्धार का आनंद हर्ष मुझे फिर से दे, और उद्धार आत्मा देकर मुझे संभाल।” लूका 10:17-20 में हम पढ़ते हैं कि यीशु ने सत्तर लोगों से कहा जिनको उसने अपने नाम से सेवा करने के लिए भेजा था।

वे सत्तर आनंद करते हुए लौटे ओर कहने लगे, हे प्रभु, तेरे नाम से दुष्टात्मा भी हमारे वश में हैं। उसने उनसे कहा, मैं शैतान को बिजली के समान स्वर्ग से गिरा हुआ देख रहा था। देखो, मैंने तुम्हें साँपों और बिच्छुओं को रौंदने का, और शत्रु की सारी सामर्थ्य पर अधिकार दिया है; और किसी वस्तु से तुम्हें कुछ हानि न होगी। तौभी इससे आनन्दित मत हो कि आत्मा तुम्हारे वश में है, परन्तु इस से आनन्दित हो कि तुम्हारे नाम स्वर्ग पर लिखे हैं।

यदि मेरे और आपके पास आनंद करने का और कोई कारण नहीं है तो उद्धार का कारण अपने आप में हमारे लिए काफ़ी है कि हम अद्भुत रीति से आनन्दित हों। कल्पना करें कि आप कैसे महसूस करेंगे यदि आपके जीवन में सब कुछ सिद्ध हो परन्तु आप यीशु को न जाने या इससे भी बुरा आपको अपनी वर्तमान परिस्थिती का सामना बिना प्रभु को जाने करना पड़े।

कभी कभी हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं, “मैं महसूस करता हूँ कि मैं चट्टान और एक कठिन स्थान के बीच में फँस गया हूँ।” जब लोग नहीं जानते कि यीशु ने यह कहा, वे ईमानदार होते हैं और वे एक कठिन स्थान के बीच में फँसते हैं। परन्तु उनके वे जो प्रभु के साथ संबंध और संगति में हैं वे एक चट्टान (यीशु) और एक कठिन स्थान के बीच में हैं। चट्टान पर खड़ा होना उन लोगों की तुलना में अधिक अच्छा स्थान है जो ऐसे लोगो के लिए उपलब्ध है जो मसीह के बिना है।

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