
और भेड़ें उसके पीछे पीछे हो लेती हैं, क्योंकि वे उसका शब्द पहचानती हैं। परन्तु वे (किसी भी प्रकार) पराए के पीछे नहीं जाएँगी, परन्तु उससे
भागेंगी, क्योंकि वे परायों का शब्द नहीं पहचानती। -यूहन्ना 10:4-5
बहुत से ऐसे भिन्न मार्ग हैं जिसमें परमेश्वर हमसे बात करता है। बहुत से लोग सोचते हैं कि वे परमेश्वर से नहीं सुनते क्योंकि वे कुछ ऐसे अलौकिक बातों को देखना चाहते हैं जो यूहीं नहीं होती है। अधिकतर समय परमेश्वर एक शांत, स्वाभाविक आवाज़ में बात करता है। परमेश्वर कहता है कि हम उसकी भेड़ें हैं और वह हमारा चरवाह है और उसकी भेड़े उसकी आवाज़ को जानतीं हैं। (यूहन्ना 10:1-5 देखिए)
वह हमसे प्रकृति के द्वारा बात कर सकता है जैसा उसने मुझसे पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पाने के कुछ ही दिनों बाद किया था। मैं एक खेत से होकर गुज़री जिनमें जंगली पौधे भरे हुए थे और उनसे हमारे मध्य में दो या तीन फूलों के पौधे लगे थे। मैंने परमेश्वर से एक संपूर्ण संदेश प्राप्त किया कि किस प्रकार ऊँटकटारों के मध्य में फूल खिल सकते हैं और हमारे जीवन के संघर्षों और परीक्षाओं के मध्य में भी कैसे अच्छी बातें पायी जाती है।
इन वर्षों के दौरान मैं परमेश्वर की आवाज़ को सुनती रही हूँ। मुझे एक खुला दर्शन मिला और शायद चार या पाँच भविष्य परख सपने भी आए। मैं इस सत्य को हल्का नहीं कर रही हूँ कि परमेश्वर कुछ लोगों से बहुत से सपनों और दर्शनों के द्वारा बात करता है परन्तु अधिकतर समय वह मेरे विचारों को अपने विचारों से भर देता है और अपने लिखित वचन के द्वारा दृढ़ करता है। वह मुझे शांति देता है, मैं उसकी बुद्धि का अनुकरण करने का प्रयास करती हूँ।
हमें सतर्कतापूर्वक प्रभु की आवाज़ की परख करने की ज़रूरत है। परन्तु परमेश्वर की सुनने को हमें अधिक आत्मिक बनाने की ज़रूरत नहीं है। यह उतना कठिन नहीं है जितना कुछ लोग सोचते हैं। यदि परमेश्वर के पास कुछ कहने के लिए है तो वह जानता है कि उसे अपनी बातें कैसे कहनी हैं। यह हमारा उत्तरदायित्व हैं कि हम केवल अपेक्षा के साथ ध्यान से सुनें और आंतरिक शांति के विषय में हमने क्या सुना।