उस तारे को देखकर वे अति आनन्दित हुए। उन्होंने उस घर मे पहुँचकर उस बालक को उसकी माता मरियम के साथ देखा, और मुँह के बल गिरकर बालक को प्रणाम किया, और अपना-अपना थैला खोलकर उसको-सोना, और लोबान, ओर गन्धरस की भेंट चढ़ाई। – मत्ती 2:10-11
हम सब क्रिसमस की कहानी को याद करते हैं। किस प्रकार से गौशाले में मरियम से यीशु पैदा हुआ और उसे चरनी में रखा गया। किस प्रकार से पूर्व देश से ज्योतिषि लोग आए एक तारे के पीछे पीछे चलते हुए जिसने उन्हें पवित्र बच्चे तक पहुँचाया। किस प्रकार से वे भीतर आए और कैसे उसकी आराधना की और उसे सोना, लोबान और गन्धरस का उपहार दिया।
इस कहानी में हम देखते हैं कि मरियम और यूसुफ उपहार खोजते हुए बाहर नहीं गए। यद्यपि उन्हें एक ठण्डे और अन्धेरे गौशाले में रात व्यतीत करनी पड़ी। वे उपहार माँगते हुए संदेश नहीं भेजे। चूँकि वे परमेश्वर की इच्छा के केन्द्र में थे उसने विद्ववानों को पूर्व देश से भेजा जो ऊँटों पर चढ़कर आए और सभी प्रबंध लेकर आए।
एक बार मैंने एक संदेश सुना था जो इस विषय पर कि मिनीसोटा की एक कलीसिया में प्रचार किया गया था। उसका शिर्षक था “ऊँट आ रहे हैं।” मूल संदेश यह था कि यदि हम परमेश्वर की इच्छा के केन्द्र में हैं वह हमेशा हमारा प्रबंध हम तक पहुँचाएगा। हमें उसे खोजते हुए जाने की आवश्यकता नहीं है यह हमें खोजेगा। हमें घटनाओं को होने देने का प्रयास नहीं करना है परमेश्वर उन्हें हम तक पहुँचाएगा।
मैं विश्वास करती हूँ कि ऊँट हममें से हर एक तक आएगा यदि हम परमेश्वर की इच्छा में बने रहते हैं। इस प्रकार के प्रबंध का कि अपेक्षा करने का एक मात्र मार्ग है। जहाँ पर परमेश्वर ने हमें रखा है वहाँ पर ठहरे रहने के प्रति विश्वासयोग्य होना है और जब कार्य उसने अपने राज्य के लिए दिया है उसे करते रहना है। जब हम ये विश्वास करना प्रारंभ करते हैं तो हम उस पर अपने बोझ को डालने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। हमें सारी रात चिंताग्रस्त होकर और व्यर्थ कल्पनाएँ करके व्यतीत करने की आवश्यकता नहीं है कि स्वयं की देखरेख करने के लिए क्या करें। हम अपने आपको परमेश्वर के साथ निवेश कर सकते हैं।