हे परमेश्वर, मेरा मन स्थिर है, मेरा मन स्थिर है, मैं गाऊँगा वरन् भजन कीर्तन करूँगा। – भजन संहिता 57:7
ध्यान दें कि यह भाग कहता है कि न केवल हमारा हृदय सीधा और खरा होना चाहिए परन्तु उसे दृढ़ भी होना चाहिए। मैंने पाया है कि हर समय दृढ़ बने रहना एक सफल सेवकाई के लिए अति आवश्यक है। मैंने पाया है कि चाहे जब कि मैं सेवकाई में व्यस्त रहती हूँ जब मैं श्रोतागणों के सामने सिखा रही होती हूँ तो शैतान ऐसे विचारों को मेरे मन में लाने का प्रयास करता है जो मेरी दृढ़ता को खोने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए यदि दो या तीन लोग अपनी घड़ियों में देखते हैं तो शैतान मुझ से फुसफुसाता है, ‘‘वे बहुत ऊब गए हैं, यहाँ वे और अधिक इंतज़ार नहीं कर सकते हैं।” यदि कुछ अधिक लोग उठकर विश्राम कक्ष में चले जाते हैं तो शैतान कहेगा, ‘‘वे जा रहे हैं क्योंकि वे तुम्हारे प्रचार को पसंद नहीं करते हैं।”
जो कुछ चाहे हम प्रभु के लिए करें शैतान हमारी दृढ़ता को कम करने के लिए कुछ करने का प्रयास करेगा। वह नहीं चाहता है कि हम अपनी प्रार्थनाओं में दृढ़ रहें। वह नहीं चाहता है कि हम विश्वास करें कि हम प्रभु से सुन सकते हैं। वह नहीं चाहता है कि हम अपने जीवन में परमेश्वर की बुलाहट पर किसी प्रकार की दृढ़ता रखें। वह चाहता है कि हम पराजय महसूस करते हुए चारों तरफ़ घूमते रहें।
इसलिए हमें अपने में हर समय एक दृढ़ हृदय रखने की आवश्यकता है। हमें स्वयं को रोज़ भय और निरूत्साह के साथ बिस्तर से खींच के बाहर नहीं निकालना है। प्रति सुबह हमें शैतान को अपने पैरों के नीचे रखने की तैयारी के साथ उठना है।
यह हम किस प्रकार कर सकते हैं? यह हम दृढ़तापूर्वक यह घोषणा करने के द्वारा करते हैं कि वचन इसके विषय में क्या कहता है। ‘‘जैसे मैं यीशु में जयवन्त से भी बढ़कर हूँ। मसीह के द्वारा मैं सब कुछ करता हूँ जो मुझे सामर्थ्य देता है। एक स्थिति में मैं विजयी हूँ क्योंकि परमेश्वर मुझे हमेशा विजय देता है।”जैसा हम देखेंगे कि न केवल शैतान हमें अकेला छोड़ने का कारण बनेगा यह हमारी दृढ़ता को भी मज़बूत करेगा।