किसी भी बात की चिंता मत करो; परन्तु हर एक बात में तुम्हारे (निश्चित) निवेदन, प्रार्थना और विनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित किए जाएँ। -फिलिप्पियों 4:6
वर्षों पूर्व मैंने यह कहते हुए एक संदेश सिखाया कि जब आप परमेश्वर से कुछ माँगते हैं आपको समय से पहले उसको धन्यवाद देना चाहिए कि आप उसे प्राप्त करने जा रहे हैं क्योंकि यह आपके प्रकाशन को प्रकट करने में आपकी सहायता करेगा। मैं यह विश्वास करती हूँ उपरोक्त वचन मैंने इसी के अर्थ के लिए लिया है कि जब मैं किसी वस्तु के लिए प्रार्थना करती हूँ मुझे परमेश्वर को धन्यवाद देना प्रारंभ कर देना चाहिए कि वह अपने रास्ते पर है। परन्तु एक दिन परमेश्वर ने उस पद का एक विस्तृत पहलू मुझ पर प्रगट किया। उसने कहा, ‘‘नहीं। मैं जो वह कह रहा हूँ वह यह है कि जब आप प्रार्थना करते हैं और उससे कुछ माँगते हैं सुनिश्चित करें कि आप यह एक धन्यवादी हृदय के आधार के नीव से कर रहे हैं।’’ तो वह आगे कहता रहा, ‘‘यदि आप उन बातों के लिए धन्यवादी नहीं है जो पहले से आपके पास है तो मैं और अधिक शिकायत करने के लिए और अधिक क्यों दूँ?’’
उन दिनों मेरा एक शिकायत करनेवाला, कुड़कुड़ानेवाला, बड़बड़ानेवाला, और गलतियाँ ढूँढ़नेवाला हृदय था। मैं कुड़कुड़ाने के लिए हज़ारों चीज़ें ढूँढ़ सकती थी परन्तु परमेश्वर नहीं चाहता है कि हम एक कुड़कुड़ाने वाला हृदय रखें। वह चाहता है कि हम ऐसे स्थान पर हों कि हम जीवित पत्रियाँ हों कि सब मनुष्यों के द्वारा पढ़ी जाती हों। हमारी जीवनशैली से लोग यह कहने में सक्षम होने चाहिए कि हमारे विषय में कुछ भिन्न है। और वे हमसे पूछें कि ‘‘तुम क्यों प्रसन्न हो? तुम इतने शांतिपूर्ण क्यों हो? तुम इतने प्रेमी क्यों हो?’’ हमें संसार के लिए नमक और ज्योति होना है। हमारे जीवन को लोगो को इस प्रकार दोहराना है कि वे उन वस्तुओं को चाहें जो हमारे पास है।