आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो, परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो। -रोमियों 12:16
प्रेम के सबसे महत्वपूर्ण पहलूयों में से एक निस्वार्थ है, जो कि रोमियों 12:16 में अन्यों की आवश्यकताओं और इच्छाओं के अनुकूल होने की इच्छुक्ता की विशेषता करके दिया गया है।
लोग जिन्होंने इस आयत के अर्थ को समझा और अपने जीवन में लागू किया ने सीखा है कि प्रेम में क्षीण होना क्या होता है। वह स्वार्थी नहीं है। उन्होंने अन्यों के अनुकूल और बराबर होना सीखा है।
दूसरी तरफ, वह लोग जो स्वयं के बारे जितना सोचना चाहिए से ज्यादा सोचते है वह दूसरों के साथ रहने में मुश्किल महसूस करते है। उनकी स्वयं के बारे ऊँची राय दूसरों को “छोटा” और “महत्वहीन” देखने का कारण देती है। वह स्वार्थ के साथ दूसरों को उनके अनुकूल होने की उम्मीद रखते है, पर वह क्रोधित या नराज हुए बिना दूसरों के साथ रहने में असहज महसूस करते है।
आप किस किस्म के व्यक्ति है। मैं बहुत स्वार्थी होती थी, पर अब मैं अपने अनुभव से आपको बता सकती हूँ कि निस्वार्थ जीवन व्यतीत करना जीवन को बिताने का एक सबसे ज्यादा संतुष्ट करने वाला मार्ग है।
एक सच्चे मसीही कि विशिष्टता दूसरे के लिए अनुकूल होने की योग्यता है। क्या आप निस्वार्थता के साथ किसी अन्य के अनुकूल होंगे?
आरंभक प्रार्थना
परमेश्वर, मुझे प्रतिदिन दिखाएं कि कैसे प्रेम के साथ अन्यों के अनुकूल होना है। मैं जब भी कर सकती अन्यों की आवश्यकताओ के अनुसार अनुकूल होना और निस्वार्थ बनना चाहती हूँ। मुझे दिखाएं कि कैसे आपके प्रेम के साथ उन तक पहुँचना है।