वह आकर संसार को पाप और धार्मिकता (हृदय की सिधाई और परमेश्वर के साथ सही संबंध) और न्याय के विषय में निरूत्तर करेगा। -यूहन्ना 16:8
अक्सर जब हम पाप के प्रति कायल होते हैं, हम दोषी महसूस करते हैं जबकि परमेश्वर हमारे साथ व्यवहार करता है। जब तक हम अपने पाप स्वीकार नहीं करते और उससे मुड़ने के लिए तैयार नहीं हो जाते और परमेश्वर से क्षमा नहीं माँगते हम एक ऐसा दबाव महसूस करते जो हमें बुरी तरह निचोड़कर उस चीज़ को बाहर लाना चाहता है जो हममें है। जितना ही जल्दि हम परमेश्वर के साथ सहमति में आते हैं हमारी शांति लौटती है और हमारा व्यवहार उन्नति करता है।
शैतान जानता है कि दोषी ठहराना और शर्मीन्दगी होने और प्रार्थना में परमेश्वर तक पहुँचने में रोके रहती है। इसलिए हमारी ज़रूरतें पूरी हो सकती है और एक बार पुनः हम परमेश्वर के साथ संगति का आनंद उठा सकते हैं। अपने विषय महसूस करना या यह सोचना कि परमेश्वर हमारे साथ क्रोधित है हमें उसकी उपस्थिती से अलग करता है। वह हमें त्यागता नहीं है, परन्तु भय के कारण हम उससे दूर चले जाते हैं।
इसलिए यह इस सत्य परखने, और कायल होने और दोषी ठहराने के बीच में अंतर हो जाना बहुत महत्वपूर्ण है। स्मरण रखिए यदि आप कायल होते हैं, तो यह आपको ऊपर उठाता और पाप से बाहर करता है। दोषी ठहराना केवल आपको आपके विषय में बुरा महसूस कराता है।
प्रार्थना करते हुए परमेश्वर से लगातार आपको अपने पापों के विषय में कायल करने के लिए माँगिए यह जानते हुए कि कायल होना एक आशीष है एक समस्या नहीं। यदि केवल सिद्ध लोग ही प्रार्थना कर सकते और उत्तर प्राप्त कर सकते तो कोई भी प्रार्थना नहीं कर रहा होगा। हमें सिद्ध होने की ज़रूरत नहीं है; परन्तु हमें पाप से शुद्ध होने की ज़रूरत है। जब मैंने अपनी प्रार्थना का समय प्रारंभ किया तो मैं लगभग हर बार अपने स्वर्गीय पिता से अपने सभी पापों और अधर्म से मुझे शुद्ध करने के लिए कहा करती थी। जब हम यीशु के नाम से प्रार्थना करते हैं, तो हम वह सब बातें हमारे पिता के सामने प्रस्तुत करते हैं जो सब कुछ यीशु है न कि हम हैं।