इसलिये हम भी परमेश्वर का धन्यवाद निरन्तर करते हैं कि जब हमारे द्वारा परमेश्वर के सुसमाचार का वचन तुम्हारे पास पहुंचा, तो तुम ने उसे मनुष्यों का नहीं परन्तु परमेश्वर का वचन समझकर (और सचमुच यह ऐसा ही है) ग्रहण किया; और वह तुम विश्वासियों में जो विश्वास रखते हो, प्रभावशील है। 1 थिस्सलुनीकियों 2:13
मैं आपको हर दिन यह कहने के लिए प्रोत्साहित करती हूं कि, “परमेश्वर इस घडी मुझ में काम कर रहा है-वह मुझे बदल रहा है!” अपने मुँह से वही बोलें जो वचन कहता है, न कि वह जो आप महसूस करते हैं। जब हम केवल जैसा महसूस करते हैं उस बारे में बात करते रहते हैं, तब परमेश्वर के वचन को हमारे अंदर प्रभावी ढंग से काम करना मुश्किल बन जाता है।
जैसे-जैसे हम मसीह में जो हो सकते हैं वैसा बनने के लिए कदम बढ़ाते हैं, तब हम कुछ गलतियां करेंगे—हर कोई ऐसा करता है। लेकिन यह हम पर से दबाव को हटा देता है जब हमें पता चलता है कि परमेश्वर हमसे केवल वही जो हम बेहतर कर सकते है उसे पूरा करने की हम से उम्मीद करता है। वो यह अपेक्षा नहीं रखता की हम सिद्ध बनें। यदि हम सिद्ध होते, तो हमें उद्धारकर्ता की आवश्यकता नहीं होती। मेरा मानना है कि परमेश्वर हमेशा हम में कुछ गलतियों को रखते हैं, ताकि हमें पता चल सके कि हमें हर दिन यीशु की कितनी जरूरत है।
मैं एक सिद्ध उपदेशक नहीं हूं। ऐसे समय होते हैं जब मैं चीजों को गलत तरीके से कहती हूं, कई बार जब मुझे लगता है कि मैंने परमेश्वर से सुना है और फिर पता चलता है कि यह मेरे ही विचार थे। कई बार ऐसे समय होते हैं जब मुझमें सिद्धता की कमी होती है। मेरे अंदर सिद्ध विश्वास, सिद्ध स्वभाव, सिद्ध विचार और सिद्ध मार्ग नहीं हैं।
यीशु जानता था कि हम सब के साथ ऐसा होगा। इसलिए वह परमेश्वर की सिद्धता और हमारी सिद्धता के बीच की खाई में खड़ा रहता है। वह निरन्तर हमारे लिये बिनती करता है, क्योंकि हमें निरन्तर इसकी आवश्यकता है (इब्रानियों 7:25)।
हमें यह विश्वास रखने की आवश्यकता नहीं है कि परमेश्वर हमें तभी स्वीकार करता है जब हम पूरी तरह से सिद्ध कार्य करते हैं। हम इस सच्चाई पर विश्वास रख सकते हैं कि वह हमें “उस प्रिय में” स्वीकार करता है (इफिसियों 1:6)।