कोमल और संवेदनशील

और मैं उनका हृदय [एक नया हृदय], एक कर दूंगा; और उनके भीतर नई आत्मा उत्पन्न करूंगा, और उनकी देह में से पत्थर [अस्वाभाविक रूप से कठोर] का सा हृदय निकाल कर उन्हें मांस का हृदय [अपने परमेश्वर के स्पर्श के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी], दूंगा। (यहेजकेल 11:19)

आज के पद में, परमेश्वर ने पत्थर के दिलों को मांस के दिलों से बदलने का वायदा किया है। दूसरे शब्दों में, वह एक कठोर व्यक्ति को एक नरम दिल, संवेदनशील व्यक्ति में बदल सकता है।

जब हम अपना जीवन परमेश्वर को देते हैं, तो वह हमारे विवेक के भीतर सही और गलत की भावना रखता है। लेकिन अगर हम कई बार अपने विवेक के विरुद्ध विद्रोह करते हैं, तो हम कठोर दिलवाले बन सकते हैं। यदि ऐसा होता है, तो हमें परमेश्वर को हमारे दिलों को नरम करने देने की आवश्यकता है, ताकि हम पवित्र आत्मा के नेतृत्व में आत्मिक रूप से संवेदनशील हो सकें।

इससे पहले कि मैं परमेश्वर के साथ सचमुच संगति करना शुरू करती, मैं बहुत कठोर हृदय की थी। नियमित रूप से उसकी उपस्थिति में होने से मेरा दिल कोमल हो गया था और इसने मुझे उसकी आवाज के प्रति अधिक संवेदनशील बना दिया था। परमेश्वर के स्पर्श के प्रति संवेदनशील हृदय के बिना, हम कई बार पहचान नहीं पाएंगे कि वह हमसे क्या बोल रहा है। वह धीरे से बोलता हैं, एक शांत, छोटी आवाज में, या किसी चीज के बारे में कोमल आस्था के माध्यम से।

एक कठोर दिल वाला, इसके बारे में जागरूक हुए बिना भी, अन्य लोगों को चोट पहुँचाने का खतरा होता है, और यह परमेश्वर के दिल को दुखी करता है। जो कठोर दिल वाले और “अपने काम करने” में व्यस्त हैं वे परमेश्वर की इच्छा या आवाज के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे। परमेश्‍वर हमारे दिल को उसके वचन के माध्यम से कोमल करना चाहता है, क्योंकि एक कठोर दिल उसकी आवाज नहीं सुन सकता और न ही वह अन्य कई आशीषें प्राप्त कर सकता है जो वह हमें देना चाहता है।


आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः अपने दिल को कोमल और परमेश्वर की आवाज के प्रति संवेदनशील रखें।

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