और मसीह यीशु में न खतना, न खतनारिहत कुछ काम का है, परन्तु केवल, जो प्रेम के द्वारा प्रभाव करता है। (गलातियों 5:6)
बहुत से लोग सोचते है कि महान विश्वास आत्मिक परिपक्वता का पहला चिन्ह है, पर मैं विश्वास करती हूँ कि आत्मिक परिपक्वता की सच्ची परख प्रेम में चलना है। हमारी प्रेम में चाल हमारे विश्वास में ऊर्जा को भरती है। परमेश्वर में विश्वास के बिना हम परमेश्वर के साथ एक अच्छा संबंध नहीं रख सकते, पर प्रेम हमारे विश्वास का प्रदर्शन करता, सशक्त करता और इसे प्रकट करता है। अगर हम सचमुच परमेश्वर से प्रेम करते और उस में विश्वास को रखते है, तो हम लोगों से प्रेम भी करेंगे।
आज का वचन हमें सिखाता है कि विश्वास प्रेम के द्वारा कार्य करता है; और प्रेम बातचीत या सिद्धान्त नहीं है; यह क्रिया है। वास्तव में, बाइबल कहती है कि अगर हम एक भाई को जरूरत में देखते है, तो उसकी जरूरत के समान हमारे पास होते हुए भी उसकी सहायता नहीं करते तो हम प्रेम में नहीं चल रहे है (देखें 1 यूहन्ना 3:17)।
यीशु ने यह भी कहा कि सारी व्यवस्था और भविष्यवाणियों का सारांश प्रेम में आता है जब उसने यह घोषणा की, “उस ने उस से कहा, ‘तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख।’ बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है और उसी के समान यह दूसरी भी है, कि ‘तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख।’ ये ही दो आज्ञाएं सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार है।” (मत्ती 22:37-40)। यीशु ने यह शब्द लोगों को तब दिए जब उससे पूछा गया कि कौन सी आज्ञा सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने बुनियादी तौर पर उससे पूछा थाः “यीशु, हमें मुख्य बात बता दें।” उसने जवाब दियाः “ठीक है। तुम मुख्य बात चाहते हो? तुम पूरी तरह से व्यवस्था और सभी भविष्यवाणियों को पूरा करना चाहते हो? तब मुझे प्रेम करो और लोगों को प्रेम करो।” यह इतना ही साधारण है। यीशु ने लोगों को यह बताया कि प्रेम में चलना ही उसको प्रसन्न करने के जीवन में चलने की एक कुंजी है। प्रेम के बिना विश्वास में चलने का प्रयास करना बैटरी के बिना एक टार्च है। हमें निश्चित होना चाहिए कि हम हमारी प्रेम की बैटरी को हमेशा चार्ज रखें। नहीं तो हमारा विश्वास कार्य नहीं करेगा!
आज आप के लिए परमेश्वर का वचनः परमेश्वर प्रेम है और जितना ज्यादा हम उसे जानते है, उतना ज्यादा हम अन्यों को प्रेम करेंगे।