
और यदि तुम क्षमा न करो तो तुम्हारा पिता भी जो स्वर्ग में है, तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा। -मरकुस 11:26
यीशु ने हमें प्रार्थना करने के लिए सिखाया, “हमारे अपराधों को क्षमा कर जैसे हमने दूसरों के अपराध क्षमा किए हैं।” परमेश्वर करूणा का परमेश्वर है, परन्तु क्षमा का यह मुद्दा उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। अपने शब्दों के द्वारा वह हमसे लगातार कहता है कि यदि हम करूणा चाहते हैं तो हमें करूणा देनी होगी। हम लगातार परमेश्वर से क्षमा पाते रहने के इच्छुक होते हैं परन्तु यह अद्भुत है कि हम दूसरों को क्षमा कितनी कम देना चाहते है।
मत्ती 18:23-35 में यीशु ने एक सेवक के विषय में हमें एक कहानी कही, जिससे उसके स्वामी का बहुत अधिक धन कर्ज़ के रूप में था और उसे माफ़ कर दिया गया। परन्तु बाहर जाकर वह सेवक अन्य सेवको से उन कुछ धनों को वापस माँगने लगा जो उन्हें उसे देना था, और उन्हें धमकी देने लगा कि यदि वे अपने कर्ज़ को नहीं भरते हैं तो वह जेल में डाल देगा। अन्य सेवकों ने अधिक अनुराध की माँग की परन्तु उन्हें जेल में डाल दिया गया। जब अन्य सेवकों ने यह बात सुनी तो अपने स्वामी से यह बात कही, जिसने इस निर्दयी सेवक को बुलाया और उससे कहा, “तुम इतनी बड़ी क्षमा पाने के बाद मेरे पास से दूर जाकर और उन सेवकों को क्षमा नहीं करने कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई वह भी एक छोटी सी रकम के लिए!”
मत्ती 18 के पद 34 में यीशु ने कहा कि वह स्वामी क्षमा न करनेवाले सेवक को उन जल्लादों को सौंप दिया और उनसे कहा कि जब तक वह पूरा पूरा उधार न चुका दे उसे कारागृह में डाल दो। मैं विश्वास करती हूँ कि जब हम क्षमा करने से इंकार करते हैं तो हम इस भावनात्मक यातना और कैदखाने में जा पड़ते हैं।
अन्य किसी से बढ़कर हम स्वयं को यातना देते हैं क्योंकि जब हम कड़वाहट, द्वेष, और किसी व्यक्ति के प्रति अक्षमा को रहने देते हैं तो हम दुःख में होते हैं। उस कहानी के अन्त में अपने श्रोताओं को चेतावनी दी। “इसी प्रकार मेरा स्वर्गीय पिता भी हर किसी के साथ करता है यदि आप अपने भाई को अपने हृदय से उसके अपराधों को मुफ़्त में क्षमा न करे।” यदि आप सेवकाई में परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल होना चाहते हैं तो आपको अवश्य ही क्षमा करना सीखना होगा।