भाईचारे के प्रेम के साथ एक दूसरे के साथ प्रेम करो (परिवार के सदस्य के समान) और परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। -रोमियों 12:10
दूसरों को महत्व देने के लिए हमें चाहिए कि हम में अपने आप को अनुकूल और सामंजस्य बनाने की इच्छा होनी चाहिए। इसका तात्पर्य है दूसरों को आगे जाने देना या किसी को श्रेष्ठ प्राप्त करने देना। हम यह सब महत्व दिखाते हैं जब हम अपने आप के लिए बचाए रखने के बजाए किसी को मिठाई का बड़ा टुकड़ा देते हैं। यह हम तब दर्शाते हैं जब हम अपने से तौले में कम सामान वाले किसी व्यक्ति को सुपर मार्केट में पहले स्थान पर पहुँचने देते हैं या कहीं पर हम कतार में खड़े हों और अपने पीछे अपने से अधिक बुजुर्ग या असहाय को देखते हैं और हम उन्हें आगे जाने देते हैं। प्रत्येक बार हम जब उस प्रकार से महत्व दिखाते हैं हमें मानसिक सामन्जस्य बिठाना होता है। हम पहले होने की योजना बना रहे थे परन्तु हम दूसरे स्थान पर होने का निर्णय करते हैं। हम जल्दि में हैं परन्तु दूसरे के लिए जो हमसे अधिक ज़रूरतमन्द दिखता है इंतज़ार करने का निर्णय करते हैं।
एक व्यक्ति तब तक प्रेम में जड़ पकड़ा हुआ नहीं है जब तक उसने दूसरों को महत्व देना नहीं सीखा है (इफिसियों 3:17 देखिए)। सामन्जस्य बिठाना मत सीखिए परन्तु इसे अच्छे स्वभाव के साथ करना सीखिए। ये चीजें करना प्रेम में चलना सीखना है।