विश्वास ही से अब्राहम जब बुलाया गया तो आज्ञा मानकर ऐसी जगह निकल गया जिसे मीरास में लेनेवाला था; और यह न जानता था कि मैं किधर जाता हूँ, तौभी निकल गया। -इब्रानियों11:8
मैं विभिन्न लोगों के जीवनियों को पढ़ना और देखना पसंद करती हूँ जो सेवकाई में, मनोरंजन में या व्यवसाय में सफल हुए हैं। कह सकते हैं कि उनमें से अधिकांश लोग बिना पराजित हुए अपने “सभी भूगतानों को किया है”। मेरा तात्पर्य यह है कि अपने शुरूआती दिनों में उन्हें हार न मानने के लिए बहुत दृढ़ संकल्प होना था। सफलता प्राप्त करने से पहले उन्होंने बहुत से पराजयों को सहा।
बहुत से अवसरों पर हम वह देखते हैं जिन्हें मैं “जुगुनु” कहती हूँ, लोग जो अपने कार्य में बिना प्रारंभिक कठिन दिनों से गुज़रे बहुत जल्द ही शिखर पर जा पहुँचते हैं परन्तु वे सामान्यतः अधिक दिन तक नहीं टिक पाते हैं। वे बिना जल्द ही बाहर आ जाते और तुरन्त ही अदृश्य हो जाते हैं। कठिन परिस्थितियों के दौरान चरित्र विकसित होता है। हमारी बुलाहट और अभिलाषाएँ की परख होती है जब हमें न कहा जाता है समय, समय पर हम दृढ़ संकल्प में बने रहते हैं।
मुझ से कहा गया कि अमेरिका के राष्ट्रपति के पद के लिए चुने जाने से पूर्व अब्राहम लिंकन ने बहुत से सार्वजनिक पदों के लिए दौड़ लगाई और कई बार हार गए। बहुत से लोग हार मान जाते परन्तु वे नहीं। थॉमस् एडिसन जिन्होंने बिजली की ज्योति की खोज की सफ़ल होने से पहले हज़ारों परीक्षणों में असफ़ल हुए थे।
केवल दृढ़ संकल्प लोग सफल होते हैं। केवल इसलिए कि वे विश्वास का एक कदम उठाते हैं। उसका यह तात्पर्य नहीं कि हम बाकि प्रक्रिया को नज़र अंदाज कर देंगे। परमेश्वर अक्सर धीमा और ठोस निर्माण करता है न कि तेज़ और भंगुर।