
शमौन पतरस ने उनसे कहा, ‘‘मैं मछली पकड़ने जा रहा हूँ।” उन्होंने उससे कहा, ‘‘हम भी तेरे साथ चलते हैं।” अतः वे निकलकर नाव पर चढ़े। -यूहन्ना 21:3
पतरस को निश्चय नहीं था कि मृतकों में से यीशु के पुनरूत्थान, जी उठने और अपने आपको उसे और शिष्यों को जीवित दिखाने के पश्चात् उसे क्या करना चाहिए। इसलिए वह काम करने के लिए चला गया जो यीशु से मिलने से पहले वह करता था; मछली पकड़ना। दूसरों ने पतरस के साथ शामिल होने का निर्णय लिया और रात भर मछली पकड़ा पर कुछ न मिला।
यूहन्ना 21:4-5 कहता है, ‘‘भोर हो रही थी और यीशु किनारे आ खड़ा हुआ, यद्यपि चेले नहीं जानते थे कि यह यीशु है। अतः यीशु ने उनसे कहा, बच्चों, क्या तुम्हारे पास कुछ मछली है? उन्होंने उससे कहा, नहीं।” भावनात्मक निर्णय कई बार हमें ‘‘बिना परिणाम” के छोड़ देती है। दूसरे शब्दों में वे सन्तुष्टदायक परिणाम नहीं देते हैं। पद छः में आगे लिखा है, ‘‘और उसने उनसे कहा, जाल को नाव के दाएँ तरफ़ डालो, और तुम पाओगे। अतः उन्होंने जाल डाला और अब वे मछलियों की बहुतायत के मारे जाल नहीं खींच सके यह रोचक है” कि यीशु ने शिष्यों को पुरूष नहीं बुलाया; परन्तु उसने उनसे बच्चे बुलाया। उसने उनसे पूछा, ‘‘जो कुछ तुम करने का प्रयास करते हो, उसमें क्या तुम कुछ भला करते हो?” यह एक ऐसा प्रश्न है जिसे हमें स्वयं से पूछना चाहिए जब लम्बे समय के कार्य के पश्चात् भी हमारे पास दर्शाने के लिए फल न हों।
जब हम परमेश्वर की इच्छा के विरूद्ध जाल डालते हैं, तो यह नाव को गलत दिशा में जाल डालने के बराबर है। कभी कभी हम संघर्ष करते, तनाव लेते, कार्य करते, और कुछ बड़ा करने का प्रयास करते हैं। हम चीज़ों को बदलने का प्रयास करते या स्वयं को बदलते हैं। हम अधिक धन प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, हम चंगाई पाने का प्रयास करते हैं, हम अपने जीवन साथी को बदलने का प्रयास करते, या एक जीवन साथी को पाने का प्रयास करते हैं। हम कार्य पर कार्य कर सकते हैं; परन्तु फिर भी अपने परिश्रम के बदले में कुछ दिखाने को न हो। क्या तुम ने कुछ पकड़ा? क्या तुमने अपनी थकान के बावजूद कुछ पाया? यदि तुम्हारा उत्तर नहीं है, तो संभव है कि तुम नाव के गलत तरफ़ जाल डाल रहे हो। यदि तुम परमेश्वर की आवाज़ को सुनते हो, तो वह तुम से कहेगा कि जाल कहाँ डालना है।