निराशा के साथ व्यवहार करना

निराशा के साथ व्यवहार करना

“अब बीती हुई घटनाओं का स्मरण मत करो।  न प्राचीनकाल की बातों पर मन लगाओ।” -यशायाह 43:18

हम सब को अवश्य ही विभिन्न समयों पर निराशा का सामना करना और उसके साथ व्यवहार करना होता है। कोई भी जीवित व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपने जीवन में सब कुछ नहीं कर सकता है या उस रीति से जैसे वे इच्छा करते हैं।

जब बातें सफ़ल नहीं होती या हमारी योजना के अनुसार आगे नहीं बढ़ती तो पहली बात जो हम महसूस करते हैं वह निराशा है। यह सामान्य है, निराशा महसूस करने में कुछ भी बुराई नहीं है। परन्तु हमें जानना चाहिए कि इस भावना के साथ किस प्रकार व्यवहार करना है या यह किसी और गंभीर बात में परिणित हो जाएगा। संसार में हम बिना निराशा के नहीं जी सकते हैं, परन्तु यीशु में हमें हमेशा पुनः नियुक्ति मिलती है!

फिलिप्पियों 3:13 में पौलुस कहता है, “हे भाइयों, मेरी भावना यह नहीं है कि मैं पकड़ चुका हूँ; परन्तु केवल यह एक काम करता हूँ कि जो बातें पीछे रह गई हैं उनको भूल कर, आगे की बातों की ओर बढ़ता हुआ, निशाने की ओर दौड़ा चला जाता हूँ।” पौलुस ने कहा कि उसके लिए बड़े महत्व की बात पीछे की बातें की ओर छोड़ देना था और आगे बढ़ना था। जब हम निराश होते हैं, तो तुरन्त पुनः नियुक्ति पाए और ठीक यही हम करते हैं। हम निराशा के कारणों को दूर करते और उन बातों की ओर बढ़ते हैं जो परमेश्वर ने हमारे लिए रखी है। हम एक नया दर्शन, नई योजना, नया विचार, ताज़ा नज़रिया और एक नई मनस्थिति पाते हैं और हम अपने ध्यान को उस तरफ़ केन्द्रित करते हैं। हम आगे बढ़ने का निर्णय करते हैं।

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