परन्तु परमेश्वर ने जगत के मूर्खों को (जानबूझकर चुना) चुन लिया है कि ज्ञानवानों को लज्जित करे, और परमेश्वर ने जगत के निर्बलों को चुन लिया (जानबूझकर चुना) है कि बलवानों को लज्जित करे; और परमेश्वर ने जगत के नीचों और तुच्छों को, वरन् जो हैं भी नहीं उनको भी चुन लिया कि उन्हें जो हैं, व्यर्थ ठहराए। ताकि कोई प्राणी परमेश्वर के सामने घमण्ड न करने पाए। -1 कुरिन्थियों 1:27-29
परमेश्वर उद्देश्यपूर्वक उन लोगों को चुनता है जो किसी कार्य के लिए अविश्वसनीय होते हैं। यह करने के द्वारा उसके पास एक अपने अनुग्रह, करूणा, सामर्थ्य का खुला हुआ द्वार है कि मुनष्य को बदले। जब परमेश्वर मेरे समान या बहुत से अन्य लोगों के समान किसी को इस्तेमाल करता है जिनका वह अभी इस्तेमाल कर रहा है। हम समझते हैं कि हमारा श्रोत हममें नहीं परन्तु केवल उसी में हैः “क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है, और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है।” (1 कुरिन्थियों 1:25) हम सब की एक मंजिल है और यह पूरा न करने का कोई कारण नहीं है। हम अपनी कमज़ोरियों को कोई बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, क्योंकि परमेश्वर कहता है, कि उसकी सामर्थ्य हमारी कमज़ोरियों में सिद्ध होती है (2 कुरिन्थियों 12:9 देखिए)। हम अपने अतीत को एक बहाने के रूप में नहीं देख सकते हैं क्योंकि परमेश्वर पौलुस के द्वारा कहता है, कि यदि कोई व्यक्ति मसीह में है तो वह एक नई सृष्टि है, और देखो पुरानी बातें बीत गई हैं और सब कुछ नया हो गया है (2 कुरिन्थियों 5:17 देखिए)।
परमेश्वर हमें कैसे देखता है यह समस्या नहीं है, समस्या यह है कि हम अपने आपको किस प्रकार देखते हैं यह हमें सफ़ल होने से दूर रखता है। हममें से प्रत्येक वह सब बनने के द्वारा सफ़ल हो सकते हैं जो परमेश्वर बनाना चाहता है कि हम बनें।