“प्रभु की बुद्धि को किसने जाना? या कौन (कभी) उसका मंत्री हुआ?” – रोमियों 11:34
हमें इस बात की समझ होनी चाहिए कि परमेश्वर हम से अधिक चतुर है। उसकी योजना सचमुच में अच्छी है चाहे मैं और आप कुछ भी सोचें परमेश्वर के मार्ग हमारे मार्गों से अच्छे हैं। मैं कई एक कुण्ठाग्रस्त समयों को पीछे मुड़कर देखती हूँ जिसमें से मैं होकर गुज़री। यह प्रयास करते हुए कि और इंतज़ार करने के विषय में कुण्ठित होने का समय और अब मैंने जाना कि मैं उनके लिए सच में तैयार नहीं थी। परमेश्वर जानता था कि मैं तैयार नहीं थी परन्तु मैंने सोचा कि मैं तैयार हूँ। मैंने अपना बहुत सारा समय यह पूछते हुए व्यर्थ किया, “क्यों? परमेश्वर क्यों”? और “कब परमेश्वर, कब?” मैंने ऐसे प्रश्न पूछे थे जिनके उत्तर केवल परमेश्वर के पास थे और मुझे बताने का कोई उसका उद्देश्य नहीं था। स्मरण रखें परमेश्वर हमारा भरोसा चाहता है – न कि हमारे प्रश्न।
मैंने इन वर्षों में पाया है कि भरोसा अनुत्तरित प्रश्नों की अपेक्षा करता है। जब हम भ्रम का सामना करते हैं हमें कहना चाहिए, “ठीक है प्रभु, इसका मेरे लिए कोई तात्पर्य नहीं, परन्तु मैं तेरे ऊपर भरोसा रखता हूँ। मैं विश्वास करता हूँ कि तू मुझे प्यार करता है और कि तू मेरे लिए सही समय पर अपना श्रेष्ठ कार्य करेगा।” परमेश्वर को कार्य करने के लिए हमारी परामर्श की ज़रूरत नहीं है उसे हमारे विश्वास की ज़रूरत है।
निर्गमन 33:13 में मूसा ने परमेश्वर से उसकी गति दिखाने के लिए प्रार्थना कीः “और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो, तो मुझे अपनी गति समझा दे, जिससे जब मैं तेरा ज्ञान पाऊँ तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर यह भी ध्यान रख की यह जाति तेरी प्रजा है।” हमें यह प्रार्थना निरन्तर करनी चाहिए यह स्मरण करते हुए कि परमेश्वर की गति में उसका समय भी शामिल है।