परमेश्वर का मित्र

परमेश्वर का मित्र

हे यहोवा परमेश्वर, मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूँगा; मैं तेरे सब  आश्चर्यकर्मों का वर्णन (ज़ोर से चिल्लाकर) करूँगा।  -भजन संहिता 9:1

परमेश्वर से केवल अपनी समस्याओं के विषय में बात करने के लिए बदले में हमें उसके विषय में उससे बात करने की ज़रूरत है। हमें उसके साथ यह बात करने की ज़रूरत है, कि वह कौन है, उसके नाम की सामर्थ्य क्या है, और उसके पुत्र यीशु की लहू की सामर्थ्य क्या है, और वह मंहान बातें जो हम जानते हैं कि कर सकता है और पहले से कर दिया है। इस प्रकार से उसकी स्तुति और प्रशंसा करने के बाद हम समस्या को बताना प्रारंभ कर सकते हैं। मैं यह पसंद नहीं करती कि मेरे बच्चे तभी मेरे पास आए जब उनके पास कोई समस्या हो। मैं चाहती हूँ कि वे मेरे साथ संगति करें। मैं अभी कुछ लोगों को स्मरण कर सकती हूँ, जो मुझे तभी फोन करते हैं जब उनके पास कुछ समस्या हो और यह मुझे पीड़ा देती है। मैं महसूस करती हूँ कि वे मेरी चिंता नहीं करते, परन्तु वे उन बातों की चिंता करते हैं जो मैं उनके लिए करूँ। मुझे निश्चय है कि आपने इसका अनुभव किया है और आप इसी प्रकार महसूस करते हैं। ये लोग अपने आपको स्वार्थी कह सकते हैं परन्तु वास्तव में वे नहीं हैं।

मित्र कठिनाइयों के समय के लिए है, परन्तु वे केवल इसी के लिए नहीं है। एक मित्र के रूप में हमें प्रशंसा करने और उन लोगों को उत्साहित करने की ज़रूरत है जिनके साथ हम संगति में हैं। हमें ऐसे लोग बनने से बचना चाहिए जिन्हें मैं “लेनेवाले” कहती हूँ, वे जो हमेशा लेते हैं कभी देते नहीं हैं। मैं परमेश्वर का मित्र होना चाहती हूँ। उसने अब्राहम को अपना मित्र बुलाया और मैं भी ऐसा चाहती हूँ। प्रभु केवल मेरी परेशानियों को दूर करनेवाला नहीं है, वह मेरा सब कुछ है। और मैं इतनी अधिक उसकी प्रशंसा करती हूँ इतना मैं जानती भी नहीं कि कैसे करना है।

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