परमेश्वर को खोजिये, वरदान को नहीं

परमेश्वर को खोजिये, वरदान को नहीं

गिबोन में यहोवा ने रात को स्वप्न के द्वारा सुलैमान को दर्श देकर कहा, ‘‘जो कुछ तू चाहे कि मैं तुझे दूँ, वह माँग’’। तू अपने दास को अपनी प्रजा का न्याय करने के लिये समझने की ऐसी शक्ति दे, कि मैं भले बुरे को परख सकूँ।- 1 राजा 3:5,9अ

एक दिन एक मित्र ने मुझ से अंगिकार किया। परमेश्वर के मुख को खोजने के बजाय, मैं परमेश्वर के वरदान को खोजने के अपराधी रहा हूँ। बहुत बार मैं इस बात के प्रति उत्सुक रहा हूँ कि वह मेरे लिये क्या करता है, बजाय इसके कि उसके मुख को खोजूँ और वह जो है उसमें मैं आनन्दित होऊँ। उसका कहना जारी रहा और उसने कहा, कि वह परमेश्वर की आशीषो को और परमेश्वर ने जो काम किया उसी को खोजती रही। परमेश्वर ने उसे बिमारों के लिए प्रार्थना करने में इस्तेमाल किया था और लोगों की सेवकाई करने के लिये उसके लिए द्वार खोला था।

हम सब सुसमाचार के सेवक को जानते है, जिन्हें परमेश्वर के द्वारा आशीष मिली है और परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किएं गए हैं। हम उनमें से कुछ लोगों को भी जानते हैं जो पतित भी हुए थे। मैं सारा विवरण नहीं जानती परन्तु शैतान की इन चालों के बारे में आवश्यक रूप से जानती हँ, कि मैं उसके तरीके का वर्णन कर सकती हूँ। परमेश्वर भक्त लोगों को उठाता है जो वास्तव में उसकी सेवा करना और दूसरों की सहायता करना चाहते हैं। वे सफल बनते हैं और यही समय होता है जब शैतान उन्हें पहली बार आक्रमण करता है। वह उन्हें स्मरण दिलाता है कि वे कौन हैं, और परमेश्वर ने उन्हें कितनी महान रीति उन्हें इस्तेमाल किया है। (शैतान कभी कभी एक झूठ तक पहुंचाने के लिये सच कहता है)। वह उन्हें और सफल या प्रसिद्ध बनने के लिये उक्साता है। वह कमाजोरी चाहे कुछ भी हो वह उसमें चाल चलता है।

यदि वे दुष्ट आभास को नहीं डांटते हैं, तो वे आगे बढ़ते हैं और और महान आत्मिक वरदानों को खोजते हैं। वे संसार के सब से अधिक प्रसिद्ध चंगाई देनेवाले या महान सुसमाचारक बनना चाहते हैं। बहुधा वे परमेश्वर के शान्त आवाजों को नहीं सुनते हैं या आगे बड़ते हुए उसके दुख को महसूस नही करना चाहते है। बहुत पहले, वे चाहते थे जो परमेश्वर देता है, परंतु उन्हें स्वयं परमेश्वर नही चाहिए। यह शैतान के सब से पुराने चालों में से एक है। वह अपने अनुयायियों को घूस देने का आरोप परमेश्वर पर लगाता है। अयूब के पहले अध्याय में परमेश्वर ने अयूब को खरा और सिधा बताया और जो परमेश्वर का भय माननेवाला और बुराई से दूर रहनेवाला मनुष्य है। (अयूब 1:8ब)।

तब शैतान ने परमेश्वर को उत्तर दिया, क्या अयूब बिना कुछ पाए परमेश्वर का भय रखता है? क्या तू ने उस पर पहरा नहीं रखा है, तू ने उसके जीवन में खुशी और आनन्द दिया है और उसके हाथों के सारे कामों को सफल किया है और उसकि समृद्धि बढ़ती गई है। लेकिन तू अपना हाथ बढ़ा और जो कुछ उसके पास है, वह सब उसके पास से हटा ले तब वह तेरे मुँह पर तुझे स्राप देगा’’। (अयूब 1:9-11)।

निश्चय ही हम जानते हैं कि अयूब ने शैतान के हाथों हार नहीं माना। उसने निश्चय ही परमेश्वर को खोजा था न कि परमेश्वर के वरदानों को। अयूब की पुस्तक बताती है, कि अयूब के जीवन में कैसे एक के बाद एक कठिनाई और परेशानियाँ आई और जिसमें उसके मित्रों ने याचना कि, की वे हार मान ले। अयूब ने कभी हार नहीं माना, क्योंकि वह परमेश्वर को खोजता था बजाय उसके वरदानों को।

इसकी विपरित राजा शाऊल के बारे में सोचें जो इस्राएल का पहला राजा था। वह लम्बा, सुन्दर और परमेश्वर के द्वारा चुना हुआ था। वह एक महान अगुवा बन सकता था परन्तु उसने शैतान को अपने मन की युद्ध को जितने दिया। बाद में शाऊल इतना अधिक दुष्टात्मा के द्वारा भर गया कि उसे जवान दाऊद की आवश्यकता पड़ी कि वह उसे वीणा बजाके उसे इस कष्ट से छुटकारा दे। अपने जीवन काल में शाऊल एक जादूगरनी स्त्री के पास गया, ताकि वह कुछ उत्तर पा सके। क्योंकि वह जानता था कि परमेश्वर उसके पास से चला गया है। वह एक ऐसा व्यक्ति था जो शैतान के पास गया। परमेश्वर से बढ़कर उसने परमेश्वर के वरदानों को और शक्ति को खोजा।

हमारा स्वर्गीय पिता अपने बच्चों को अच्छी चीजें देने में प्रसन्न होता है। लेकिन तब ही जब हम केवल पहले उसे खोजें। उपरोक्त पदों में जब सुलेमान ने बुद्धि माँगा; परमेश्वर ने न केवल उसे बुद्धि दी, परन्तु परमेश्वर ने उसे बुद्धि और धन संपत्ति भी दी। क्योंकि उसने उन चीजों को नहीं माँगा था, इसलिये परमेश्वर ने कहा, ‘‘मैं उन्हें तुम्हें देनेवाला हूँ।’’ यही परमेश्वर का काम करने का दयालु तरीका है। जब परमेश्वर को खोजिये, वरदान को नहीं आप उसे खोजते हैं, तो वह दयालू पूर्वक देता है। जब आप केवल उसकी उपहारों को खोजते हैं, आप उन उपहारों को प्राप्त करेंगे, तब आप एक खाली जीवन भी पाएँगे। या फिर आप शैतान को फायदा उठाने देंगे।

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‘‘महान और बुद्धिमान परमेश्वर, गलत चीजों को खोजने के लिये मुझे क्षमा करें। मेरी सहायता कर कि मैं तुझे खोजू। केवल तेरी ही बाट जोहू और कि मैं तुझे कैसे प्रसन्न करूँ। मैं चाहता हूँ कि तू मुझे इस्तेमाल करें कि मैं तेरी सेवा करूँ। लेकिन सब से बढ़कर मैं यह जानना चाहती हूँ कि मेरा जीवन तुझे प्रसन्न करता है। मैं तेरी सहायता माँगती हूँ, यीशु के नाम से। आमीन।।’’

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